..वो दिल से भूल बैठी हैं मुझे..
..जैसे जमानें के वसूलों से तौल बैठी हैं मुझे..
..छुपानें को मुझे अब मेरा चेहरा नहीं..
..चेहरें से मेरे वो भूल बैठी हैं मुझे..
..अब कोई बात रास नहीं आती..
..कोई साज़ धडकन नहीं सुनाती..
..बतानें को तो हैं यूं बहोत कुछ..
..लेकिन यें ज़मीर बिन-तेरे मुझे शायर नहीं बताती..!
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