Monday, 19 May 2014

..ये सर हैं जो कटतें नहीं गुनाहों के बोझ..

..मेरे माथें से हटतें नहीं गुनाहों के बोझ..
..सर सहतें नहीं ये इल्ज़ामों के बोझ..
..कौन-कौन खडा हैं हिसाबों के चक्कर में..
..ये सर हैं जो कटतें नहीं गुनाहों के बोझ..

..सबनें दिया हैं इम्तहान अपना..
..किश्तों में ही सही दिया हैं सबनें जान अपना..
..मैं रुठता हूँ तो इसमें हर्ज़ ही क्या हैं..
..क्यूं नकाबों के आडे दिया हैं सबनें पहचान अपना..

..लूटता रहा ज़माना अब समेटें किस काम..
..हमारें हथ्थें चढें सारें कानूनी किताब..
..अब रग-रग हैं धूँधला चेहरें पे हैं फ़रेब..
..और खुदा तुम हिसाब करतें हो वो भी सारें सफ़ेद..

..अए वर्मा अब किस बात की गज़ल सुनानें आऐ हो..
..सीनें में हैं तुम्हारें राख ये जतानें आऐ हो..
..बस करों अब रहनें दो इंसा से इंसानियत की बात..
..सियासत से जो तुम सब बिगाड आऐ हो..!

..नितेश वर्मा..



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