Thursday, 1 May 2014

..मुहब्बत इक पैगाम हैं..

..मुहब्बत इक पैगाम हैं..
..जिससे हुई बात आज़ आम हैं..

..खबरें बनानें को ये मंज़र बनी हैं..
..चेहरें पे बनी शर्म हुई आज़ काम हैं..

..ये मुहब्बत..
..ज़िन्दगी को हरानें की रस्सी बनी हैं..
..दिल से मुझे गिरानें की मकसद बनी हैं..

..सूरत तेरी अब मैली हो गई हैं मेरी लैला..
..आँखों में मेरे..
..बसी तस्वीर तेरी कुछ धूँधली सी पडी हैं..

..सितम दिल पे मेरे तेरे अब हैं भारी पडे..
..मासूम ज़िन्दगी..
..मेरी अब लूट के रह गयीं हैं..

..मुहब्बत में हैं जो दर्द "अए वर्मा"..
..वो लफ़्ज़ों में बस के रह गयी हैं..!


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