Friday, 9 May 2014

..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..

..दर्द का समुन्दर लिए चलता हूँ..
..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..

..शहरें दिल की जब बात आती हैं..
..मैं सियासत में हूँ फ़िर भी सरेआम निकल चलता हूँ..

..वो सताया हैं किसी गम का..
..मेरे हिस्सें से मैं एक किताब लिए चलता हूँ..

..किसी मोड मिल जाएं ख़रीदार मेरा..
..चेहरें पे मैं मुस्कान लिए चलता हूँ..

..और कुछ बताना हैं इस आवाम को..
..खाली हाथ मैं भरें-रात निकल पडता हूँ..

..किसी और का सताया होगा वो..
..ज़ुर्म सारें हिन्दुस्तां के सर लिए चलता हूँ..

..मैं थकना चाहता नहीं मैं ये बात कहना चाहता हूँ..
..तुम खूब खर्च करों मेरे यार मैं तुमसे मुकर जाना चाहता नहीं..

..अब क्या सँभालेगी दर्द की दास्तां मुझे..
..मैं सियासत से बगावत किए चलता हूँ..

..दर्द का समुन्दर लिए चलता हूँ..
..मैं वो इंसा हूँ जो दिल में सिकन्दर लिए चलता हूँ..!


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