हमें गुमाँ होता है ख़ुद के होने पर
हम ख़ुद पागल है इस बेहूदगी पर
हर रोज़ वही मसलेहत माज़ी की
हैं फ़िर बेज़ुबाँ इस जद्दोजहद पर
के आके थाम लेती हैं बाहें उसकी
बदहाली जो होती है यूं बेवक्त पर
आसमां जब भी खाली लगता है ये
घटा कहीं और होती है तड़प पर
अब ना होना या होना मतलब नहीं
बेमतलब की सब बातें हैं ख़ुद पर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
हम ख़ुद पागल है इस बेहूदगी पर
हर रोज़ वही मसलेहत माज़ी की
हैं फ़िर बेज़ुबाँ इस जद्दोजहद पर
के आके थाम लेती हैं बाहें उसकी
बदहाली जो होती है यूं बेवक्त पर
आसमां जब भी खाली लगता है ये
घटा कहीं और होती है तड़प पर
अब ना होना या होना मतलब नहीं
बेमतलब की सब बातें हैं ख़ुद पर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment