हाँ तो! झुंझलाके मैंने दीवार फोड़ी भी है
फ़िर ताउम्र रो-रोकर शक्लें जोड़ी भी है।
किसी उम्मीद में बैठे मुसाफ़िर थे हम भी
उसने हर मर्तबा अपनी बात तोड़ी भी है।
हम ही माँगते थे बारहां कुछ मोहलत भी
हम ही है जो हर राब्ता अब छोड़ी भी है।
हालात के आगे मजबूर है इतने क्या कहे
मंजिल पे आके ख़ुद गला ममोड़ी भी है।
सुनते आये हैं क़िस्से मददगारी के बहुत
परेशां होके हमने हर चाल मोड़ी भी है।
मैंने हर आस को बांधा है ख़ुदसे ही वर्मा
किसी से नहीं गिला मुझको थोड़ी भी है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
फ़िर ताउम्र रो-रोकर शक्लें जोड़ी भी है।
किसी उम्मीद में बैठे मुसाफ़िर थे हम भी
उसने हर मर्तबा अपनी बात तोड़ी भी है।
हम ही माँगते थे बारहां कुछ मोहलत भी
हम ही है जो हर राब्ता अब छोड़ी भी है।
हालात के आगे मजबूर है इतने क्या कहे
मंजिल पे आके ख़ुद गला ममोड़ी भी है।
सुनते आये हैं क़िस्से मददगारी के बहुत
परेशां होके हमने हर चाल मोड़ी भी है।
मैंने हर आस को बांधा है ख़ुदसे ही वर्मा
किसी से नहीं गिला मुझको थोड़ी भी है।
नितेश वर्मा
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