अँधेरे में जो तुम ही जलकर सामने आ जाती
सच्चाई सब वहीं निकलकर सामने आ जाती।
जब भी कभी थोड़ा तल्ख़ होना चाहता था मैं
इक सूरत हसीन पिघलकर सामने आ जाती।
ये दरम्यान नजाने क्या बचा था दरोदीवार के
परछाइयाँ ख़ुदसे लिपटकर सामने आ जाती।
तकलीफ़ तुम्हारे वापस लौटके आने की नहीं
बस कभी ये मौजूँ बदलकर सामने आ जाती।
बहुत तन्हा महसूस किया था मैंने ख़ुदको तब
जब शामें मुझमें ही ढ़लकर सामने आ जाती।
हुस्न दरिया था उसका पर थी सराब में ज़िन्दा
प्यासी थी तो वहीं मचलकर सामने आ जाती।
दमपुख़्त फ़िरसे ख़ुदको किये है हम भी वर्मा
वो सलीका नहीं के घुलकर सामने आ जाती।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
सच्चाई सब वहीं निकलकर सामने आ जाती।
जब भी कभी थोड़ा तल्ख़ होना चाहता था मैं
इक सूरत हसीन पिघलकर सामने आ जाती।
ये दरम्यान नजाने क्या बचा था दरोदीवार के
परछाइयाँ ख़ुदसे लिपटकर सामने आ जाती।
तकलीफ़ तुम्हारे वापस लौटके आने की नहीं
बस कभी ये मौजूँ बदलकर सामने आ जाती।
बहुत तन्हा महसूस किया था मैंने ख़ुदको तब
जब शामें मुझमें ही ढ़लकर सामने आ जाती।
हुस्न दरिया था उसका पर थी सराब में ज़िन्दा
प्यासी थी तो वहीं मचलकर सामने आ जाती।
दमपुख़्त फ़िरसे ख़ुदको किये है हम भी वर्मा
वो सलीका नहीं के घुलकर सामने आ जाती।
नितेश वर्मा
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