Wednesday, 12 October 2016

सुर्ख़ मखमली होंठ, गुलाबी होते हुये गाल

सुर्ख़ मखमली होंठ, गुलाबी होते हुये गाल
कानों से लिपटे हुये झुमके की बालियाँ
और तुम्हारा दायें हाथ से
बिखरी जुल्फों को कान के पीछे ले जाना
एक चेहरा जो तुममें खोया रहा था
वो आज तलक रिहा नहीं हुआ है
उस कैंटीन की शामे-मुलाक़ात से
बंद है ख़याल दिल के किसी कोने में
एक हसीन सा कमरा बनकर
जिसकी दीवार की हर ईंट में
बस तुम ही तामीर हुयी हो
जहाँ सदियों से तुम्हारी इक तस्वीर
मुस्कुराएँ जा रही है मुझे देखकर
बिन कुछ कहे.. बड़ी ख़ामोशी से।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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