Wednesday, 12 October 2016

मुझे लहूलुहान कफ़न में लिपटा देखकर

मुझे लहूलुहान कफ़न में लिपटा देखकर
बिलख रही थी इक मासूम गाँव
जिसके घर के कई चूल्हे बुझे रह गये थे
उस रात जब गाँव के खेलते हुए बच्चे
बिना किसी हो-हल्ला के भूखे सो गये
चाँदनी नहीं ठहरीं थी किसी आंगन में
हवाएँ बेरुख़ होकर कहीं ठहर गई थी
जब बहता ख़ून मेरा बर्फ में जमकर
पिघलने लगा था सबके सीनों में
और तड़पते हुये तमाम बोझिल मन से
लोग शहरों के उतर आये थे रस्तों पर
मेरे हाथ से तब छूटता तिरंगा थम गया
और उसे अपने सीने में अंदर तक
गाड़कर मैं मुस्कुराता शहीद हो गया
मैंने ख़ुद ही ऐसी शहादत चाही थी
ये इल्तिज़ा है.. कफ़न के ऊपर लिख देना
मैं जीता हूँ देश पर मरने के ख़ातिर
मेरा नाम सिपाही है.. मेरा नाम सिपाही है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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