तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है
तुझमें ही तो डूब जाता हूँ मैं
जब-जब गर्मियाँ मुझमें उतरती है
मैं हूँ इक धूप.. तू हवा सी है
तू चलती है तो मैं चलता हूँ
तेरे ही होने से है ये सब मुझमें
ख़यालों की काग़ज पे तू ही उभरती है
तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है
तुझमें ही तो डूब जाता हूँ मैं
जब-जब गर्मियाँ मुझमें उतरती है
मैं हूँ इक धूप.. तू हवा सी है
तू चलती है तो मैं चलता हूँ
तेरे ही होने से है ये सब मुझमें
ख़यालों की काग़ज पे तू ही उभरती है
तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
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