चीख़ो मत।
चीख़ूँगी। क्या कर लेंगे आप मेरा? मारेंगे? तो मारिये, लेकिन मैं चुप नहीं रहूँगी।
मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूँ। ये तुम भी कैसी बातें कर रही हो?
क्यूं इतनी बार से क्या किया है आपने। जब मैं अपना सबकुछ छोड़कर रात के गहरे सन्नाटे में भागते हुये आपके पास.. आपके दरवाज़े पर आयीं थी.. आपने तब अपना दरवाज़ा ना खोलकर मुझे मारा था। जब मैं बाहर उस दहलीज़ पर घंटों बैठकर रोई थीं और आपने मुड़कर एक बार भी मेरा हाल ना जानना चाहा.. तब.. तब आपने मुझे मारा था। जब मेरी मंगनी तय हो रही थी और मैं किसी अँधेरे कमरे में बैठकर बिलख-बिलखकर रो रही थी तब मुझे देखकर मुझसे निगाहें फ़ेरकर आप चले गये थे.. तब आपने मुझे मारा था। मेरी रुख़सती के दिन जब आपने शह्र छोड़कर मुझे और भी तन्हा कर दिया था तब आपने मारा था मुझे। जब बिस्तर पर मेरा जिस्म किसी और के हवाले था और रुह आप में खोया हुआ था तब.. तब आपने मुझे मारा था।
मुझे चोट नहीं लगती, मेरा जिस्म कहीं लहूलुहान नहीं होता लेकिन मैं अंदर ही अंदर से मरती आ रही हूँ। मैंने शायद इक ज़ुर्म किया था मुहब्बत करके.. और मैं उसमें ही तिल-तिल करके मर रही हूँ।
मेरी एक दरख़्वास्त है कमसेकम मुझे इस बार चैन से मरने दीजिए। बेचैनी से मेरी जान मत निकालिये। अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं रह गयी है कि मैं आपसे कुछ कह सकूँ या आपकी मार को सह सकूँ। ख़ुदा के लिये अब मुझे बख़्श दीजिये।
क्या मैं इतना बुरा हूँ?
हाँ! बहुत बुरे है आप।
बुरा ही सही, लेकिन अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा। इन हज़ारों ज़ुल्मों के बीच तुम ये भी कान खोलकर सुन लो- अब तुम मेरे ही पास रहोगी और मेरे कहने पर ही कहीं जाओगी। और तो और तुमने और कुछ कहा ना तो मैं तुमसे ज़बरदस्ती निक़ाह भी करूँगा। तुम मुझसे बच नहीं सकती। मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता।
आप बहुत बुरे है। मैं आपसे तंग आ गयीं हूँ ख़ुदा करे कि.. कि आपको मौत आ जाये।
मैं मर जाऊँगा तो तुम्हें ख़ुशी मिल जायेगी?
हाँ! बहुत ख़ुशी मिल जायेगी।
छोटे से दिल नूं समझावा की
तेरे नाल क्यूं लाइय्या अँखियाँ..
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
चीख़ूँगी। क्या कर लेंगे आप मेरा? मारेंगे? तो मारिये, लेकिन मैं चुप नहीं रहूँगी।
मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूँ। ये तुम भी कैसी बातें कर रही हो?
क्यूं इतनी बार से क्या किया है आपने। जब मैं अपना सबकुछ छोड़कर रात के गहरे सन्नाटे में भागते हुये आपके पास.. आपके दरवाज़े पर आयीं थी.. आपने तब अपना दरवाज़ा ना खोलकर मुझे मारा था। जब मैं बाहर उस दहलीज़ पर घंटों बैठकर रोई थीं और आपने मुड़कर एक बार भी मेरा हाल ना जानना चाहा.. तब.. तब आपने मुझे मारा था। जब मेरी मंगनी तय हो रही थी और मैं किसी अँधेरे कमरे में बैठकर बिलख-बिलखकर रो रही थी तब मुझे देखकर मुझसे निगाहें फ़ेरकर आप चले गये थे.. तब आपने मुझे मारा था। मेरी रुख़सती के दिन जब आपने शह्र छोड़कर मुझे और भी तन्हा कर दिया था तब आपने मारा था मुझे। जब बिस्तर पर मेरा जिस्म किसी और के हवाले था और रुह आप में खोया हुआ था तब.. तब आपने मुझे मारा था।
मुझे चोट नहीं लगती, मेरा जिस्म कहीं लहूलुहान नहीं होता लेकिन मैं अंदर ही अंदर से मरती आ रही हूँ। मैंने शायद इक ज़ुर्म किया था मुहब्बत करके.. और मैं उसमें ही तिल-तिल करके मर रही हूँ।
मेरी एक दरख़्वास्त है कमसेकम मुझे इस बार चैन से मरने दीजिए। बेचैनी से मेरी जान मत निकालिये। अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं रह गयी है कि मैं आपसे कुछ कह सकूँ या आपकी मार को सह सकूँ। ख़ुदा के लिये अब मुझे बख़्श दीजिये।
क्या मैं इतना बुरा हूँ?
हाँ! बहुत बुरे है आप।
बुरा ही सही, लेकिन अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा। इन हज़ारों ज़ुल्मों के बीच तुम ये भी कान खोलकर सुन लो- अब तुम मेरे ही पास रहोगी और मेरे कहने पर ही कहीं जाओगी। और तो और तुमने और कुछ कहा ना तो मैं तुमसे ज़बरदस्ती निक़ाह भी करूँगा। तुम मुझसे बच नहीं सकती। मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता।
आप बहुत बुरे है। मैं आपसे तंग आ गयीं हूँ ख़ुदा करे कि.. कि आपको मौत आ जाये।
मैं मर जाऊँगा तो तुम्हें ख़ुशी मिल जायेगी?
हाँ! बहुत ख़ुशी मिल जायेगी।
छोटे से दिल नूं समझावा की
तेरे नाल क्यूं लाइय्या अँखियाँ..
नितेश वर्मा
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