प्रतिक्रियाओं के विकृत मानसिकता भरे दौर में
विभिन्न प्रतिस्पर्धा में मनुष्यों का होता आगमन
उन विचारधाराओं से ओत-प्रोत होकर
असंयमित प्रकार से खंगालता है इंसानियत
अब उग़ता जाता है इसपर चंचल स्वभाव मेरा
और झुंझलाता है स्वयं के इस दुर्व्यवहार पर
सामाजिक बुनियादी ढांचा नीरस प्रतीत होता है
और सुबह से काम कर घर लौटता मजदूर
एक नितांत सरोवर के समीप बैठकर
पत्थर फ़ेंकता रहता है अपनी इच्छाओं के
सरोवर में बैठे हुये उन हंसो के जोड़ो पर
स्वयं को वृक्ष के डाल पर बैठे हुये कौओं से
एक चिढ़न से पलता हुआ बगुला बताकर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
विभिन्न प्रतिस्पर्धा में मनुष्यों का होता आगमन
उन विचारधाराओं से ओत-प्रोत होकर
असंयमित प्रकार से खंगालता है इंसानियत
अब उग़ता जाता है इसपर चंचल स्वभाव मेरा
और झुंझलाता है स्वयं के इस दुर्व्यवहार पर
सामाजिक बुनियादी ढांचा नीरस प्रतीत होता है
और सुबह से काम कर घर लौटता मजदूर
एक नितांत सरोवर के समीप बैठकर
पत्थर फ़ेंकता रहता है अपनी इच्छाओं के
सरोवर में बैठे हुये उन हंसो के जोड़ो पर
स्वयं को वृक्ष के डाल पर बैठे हुये कौओं से
एक चिढ़न से पलता हुआ बगुला बताकर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
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