ज़िंदगी किसी सर्द से पड़े आशियाने में क़ैद थी
जब दो कनीय अभियांत्रिकी छत घूर रहे थे
ख़यालों की ओस भरी बूंदें जब टपक रही थी
तब लानत भेजते कुछेक ख़्वाहिशें सुस्ता रहे थे
उस AC के बंद कमरे में धीमी रोशनी के बीच
TV जब बहस में गुमशुदा होती जा रही थी
दरवाज़े पर मजदूरों के बर्तन खटखटा रहे थे
चीख़ती महिलाएँ ताने दे रही थी
कोस रही थी किस्मत और लाचारी को
बच्चे भूख से बिलखते आँधियों के धूल चाट रहे थे
मध्यम चाँद जब शीतल होकर रोशनी फैला रही थी
बारिश के फुहारों के बीच जब अचानक ख़िड़की खुली
तो दोनों ने सरसरी तरीके से ग़ौर फ़रमाया
मजदूर बारिशों-तूफ़ाँ से जद्दोज़हद करके
बचा रहा था कि उसका छप्पर सिर पर कुछ देर और पड़ा रहे
के ये रात गुजरने में अभी बहुत रात बाक़ी है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जब दो कनीय अभियांत्रिकी छत घूर रहे थे
ख़यालों की ओस भरी बूंदें जब टपक रही थी
तब लानत भेजते कुछेक ख़्वाहिशें सुस्ता रहे थे
उस AC के बंद कमरे में धीमी रोशनी के बीच
TV जब बहस में गुमशुदा होती जा रही थी
दरवाज़े पर मजदूरों के बर्तन खटखटा रहे थे
चीख़ती महिलाएँ ताने दे रही थी
कोस रही थी किस्मत और लाचारी को
बच्चे भूख से बिलखते आँधियों के धूल चाट रहे थे
मध्यम चाँद जब शीतल होकर रोशनी फैला रही थी
बारिश के फुहारों के बीच जब अचानक ख़िड़की खुली
तो दोनों ने सरसरी तरीके से ग़ौर फ़रमाया
मजदूर बारिशों-तूफ़ाँ से जद्दोज़हद करके
बचा रहा था कि उसका छप्पर सिर पर कुछ देर और पड़ा रहे
के ये रात गुजरने में अभी बहुत रात बाक़ी है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment