अब रोशनी हमारे आँगन में फैलने लगी है
ख़ूँ-ख़राबों के बाद शुरू हुई ये दिल्लगी है।
कितना मातम मनाओगे ख़ुदके गुजरने पे
ये क़िस्सा तमाम भी बस इक ख़ुदकुशी है।
इश्क़ के वास्ते ना कभी रस्ते पर आये थे
मज़ूरी ज़िंदगी की भी मुकम्मल शायरी है।
तमाम बोझ अपने कंधों पर रखकर चलो
अज़ीब कुछ नहीं है समझो सब बेख़ुदी है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
ख़ूँ-ख़राबों के बाद शुरू हुई ये दिल्लगी है।
कितना मातम मनाओगे ख़ुदके गुजरने पे
ये क़िस्सा तमाम भी बस इक ख़ुदकुशी है।
इश्क़ के वास्ते ना कभी रस्ते पर आये थे
मज़ूरी ज़िंदगी की भी मुकम्मल शायरी है।
तमाम बोझ अपने कंधों पर रखकर चलो
अज़ीब कुछ नहीं है समझो सब बेख़ुदी है।
नितेश वर्मा
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