Wednesday, 12 October 2016

जलती चिंगारी में एक लौ जला डालो

जलती चिंगारी में एक लौ जला डालो
हमें हमारे जिस्म से अब मिला डालो।

कबसे एकसुरी ज़िद पे बैठे हुए हैं वो
उन्हें भी उनके हक का दिला डालो।

याद तो हमें बरसों रही उनकी इश्क़
अब इसपर तुम भी कुछ सुना डालो।

लेने लगी हैं ये करवटें सिसकियाँ भी
मरहमी लबों जामे अब पिला डालो।

सोया हुआ था बेख़ौफ शहर में वर्मा
कोई पत्थर फेंको, मुझे हिला डालो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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