थकन जब ओढ़कर शाम मुझमें ढ़लती रही
एक शक्ल धुंधली सी करवट ले जलती रही।
जब मातम मेरे दहलीज़ पर आकर बैठ गई
मयस्सर सारी चीज़ें फ़िर बहुत ख़लती रही।
हमने तो आँखों में बस मुहब्बत सजायी थी
कौन-सी आँखें थी जो मुझमें पिघलती रही।
हौसला बहुत देर बाद आया हमें मरने का
वो एक सज़ा थी जो हर बार बदलती रही।
फ़ख्र ना हुआ उसके दास्तान पे मुझे वर्मा
मुतासिर हो गये यही किरदारे ग़लती रही।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
एक शक्ल धुंधली सी करवट ले जलती रही।
जब मातम मेरे दहलीज़ पर आकर बैठ गई
मयस्सर सारी चीज़ें फ़िर बहुत ख़लती रही।
हमने तो आँखों में बस मुहब्बत सजायी थी
कौन-सी आँखें थी जो मुझमें पिघलती रही।
हौसला बहुत देर बाद आया हमें मरने का
वो एक सज़ा थी जो हर बार बदलती रही।
फ़ख्र ना हुआ उसके दास्तान पे मुझे वर्मा
मुतासिर हो गये यही किरदारे ग़लती रही।
नितेश वर्मा
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