के अब औ' इंतज़ार करने में दिल बैठता है
कोई खोया हुआ शख़्स जब मिल बैठता है।
कई धूप कई बारिश, कइयों तूफ़ाँ से गुजरे
ये हाल आज अज़ीब है जुबाँ हिल बैठता है।
मातम जैसे सारे कमरे में मूसल्लत हुई हो
वो किरदार जब क़िस्से से निकल बैठता है।
बहुत ग़लत होता रहा था साथ मेरे ही वर्मा
बयानबाज़ी भी अक्सर जो बदल बैठता है।
नितेश वर्मा
कोई खोया हुआ शख़्स जब मिल बैठता है।
कई धूप कई बारिश, कइयों तूफ़ाँ से गुजरे
ये हाल आज अज़ीब है जुबाँ हिल बैठता है।
मातम जैसे सारे कमरे में मूसल्लत हुई हो
वो किरदार जब क़िस्से से निकल बैठता है।
बहुत ग़लत होता रहा था साथ मेरे ही वर्मा
बयानबाज़ी भी अक्सर जो बदल बैठता है।
नितेश वर्मा
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