इस बात पर क्या कहे हम आख़िर
लब परेशान, आँखें है नम आख़िर।
हम अपने हवाले से क्या बोले अब
जो सुनोगे, कहोगे है कम आख़िर।
पत्ता-पत्ता टूटकर बिखर गया तेरा
तू दरख़्त था यही है वहम आख़िर।
अब तक प्यास से गला सूखता था
ऐ! बारिश अब तो तू थम आख़िर।
हमीं घायल क्यूं हैं, उनके तीरों से
बंद करो इंसानों ये रहम आख़िर।
मिटता है जब ख़ुद का वुज़ूद वर्मा
ख़ुदका होना भी है अहम आख़िर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
लब परेशान, आँखें है नम आख़िर।
हम अपने हवाले से क्या बोले अब
जो सुनोगे, कहोगे है कम आख़िर।
पत्ता-पत्ता टूटकर बिखर गया तेरा
तू दरख़्त था यही है वहम आख़िर।
अब तक प्यास से गला सूखता था
ऐ! बारिश अब तो तू थम आख़िर।
हमीं घायल क्यूं हैं, उनके तीरों से
बंद करो इंसानों ये रहम आख़िर।
मिटता है जब ख़ुद का वुज़ूद वर्मा
ख़ुदका होना भी है अहम आख़िर।
नितेश वर्मा
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