Wednesday, 12 October 2016

जब बारिश नहीं होती है किसी मौसम में

जब बारिश नहीं होती है किसी मौसम में
और सूरज बादलों के बीच छिपा होता है
पेड़ों से पत्ते जब अलग होते रहते हैं
धूल हवाओं में जब लहरें पैदा करती हैं
सकुचाया मन जब विचलित हो उठता है
युद्ध का बिगुल जब बजाया जाता है
मासूम से गाँव के कुछ लोग हारे मन से
हल लेकर खेतों की ओर भागने लगते है
और जब फसल लेकर घर लौटते हैं
तबतक उनका घर ढ़ेर हो चुका होता है
वो उन राखों के बीच तलाशते रहते है
बदले की भावना जो शांत पड़ गई होती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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