Monday, 5 September 2016

ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ

ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ
मेरे बोल सिर्फ़ मुझमें ही नहीं सिमटते हैं
कई दर्द, कई जवाब, ख़ाबों की मस्ती हूँ

सौ उबलते ख़यालों को जलाया हैं मैंने
दर्दों को भी तो हँसना सिखलाया हैं मैंने
मेरे ज़िस्म पर हर्फ़ मचलती रहती है
मेरे अंदर भी हूँ मैं कहाँ झूठलाया हैं मैंने
अज़ीब दास्तानगो हूँ ख़ुदसे मुकरती हूँ
ख़ुदमें कई क़िस्सों को बहलाया हैं मैंने
मेरी ज़र्द चेहरे पर कई ख़्वाहिशें उमड़ती हैं
कभी शर्मीली सी तो कभी मैं जबरदस्ती हूँ
ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ

बेख़ौफ मंजिलों तलक भटकती हूँ कभी
समुंदर ज़ुबाँ पे रखकर गटकती हूँ कभी
आसमां पे भी चलने का हुनर है मुझमें
पर इनसे दूर ख़ुदको झटकती हूँ कभी
मैं आलस में उलझी इक कविता सी हूँ
ख़्वाहिशों भरी डाली से लटकती हूँ कभी
धड़कनों की हर साज़िश से वाकिफ़ हूँ
कभी मुनासिब तो कभी मौकापरस्ती हूँ
ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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