ऐसा माना जाता है कि उर्दू को हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर सबसे पहले अमीर ख़ुसरो लेकर आए थे। अमीर ख़ुसरो उर्दू अदब के एक बहुत ही जाने-माने अदबी रहें है, इन्हें इनकी हाज़िर-ज़वाबी के लिए तूतिये-हिंद का ख़िताब दिया गया है। इनकी हाज़िर-ज़वाबी को लेकर कई क़िस्से प्रचलित है, एक क़िस्सा ये भी काफ़ी मशहूर है-
एक बार गर्मियों के मौसम में अमीर ख़ुसरो इधर-उधर घूमकर चक्कर काट रहे थे। थोड़ी ही देर में उनका गला सूखने लगा और वो अपनी प्यास मिटाने के लिए एक कुएँ के पास पहुँचे। वहाँ पहले से ही चार औरतें अपने बर्तनों में पानी भर रही थी, अमीर ख़ुसरो ने उनसे पानी पिलाने को कहा। उन औरतों में से एक ने अमीर ख़ुसरो को पहचान लिया और सबको उनके मशहूरियत के बारे में बताया। वे औरतें तो पहले उन्हें सामने देखकर हैरान हो गई फिर अमीर ख़ुसरो से कहा कि वे उन्हें तभी पानी पिलाऐंगी जब वो उन चारों के दिए शब्दों को मिलाकर एक कवितात्मक रचना बनाकर उन्हें सुनाऐंगे। एक प्यासे इंसान के लिए यह बहुत मुश्किल काम हो सकता है लेकिन वो अमीर ख़ुसरो थे.. उन्होंने कहा कि ठीक है! मुझे मंज़ूर है.. आप लोग अपने-अपने शब्दों को बताइये।
पहली औरत ने कहा- चरखा
दूसरी ने- कुत्ता
तीसरी ने बोला- खीर
और चौथी ने कहा- ढ़ोल
ये शब्द काफ़ी हास्यास्पद थे, और अमीर ख़ुसरो काफ़ी खुशमिज़ाज इंसान थे उन्होंने उनके दिये हुए शब्दों से एक काफ़ी दिलचस्प दोहा बनाकर पेश किया -
दूसरी ने- कुत्ता
तीसरी ने बोला- खीर
और चौथी ने कहा- ढ़ोल
ये शब्द काफ़ी हास्यास्पद थे, और अमीर ख़ुसरो काफ़ी खुशमिज़ाज इंसान थे उन्होंने उनके दिये हुए शब्दों से एक काफ़ी दिलचस्प दोहा बनाकर पेश किया -
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाए।
आया कुत्ता खा गया, तु बइठि ढ़ोल बजाए।।
आया कुत्ता खा गया, तु बइठि ढ़ोल बजाए।।
अमीर ख़ुसरो के इस खूबसूरत से दोहें को सुनकर वे सब औरतें खिलखिलाकर हँस पड़ी और उनका गुणगान करती उन्हें पानी पिलाने लगी।
नितेश वर्मा
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