अब मुहब्बत से कहने को क्या है
जो दिल नहीं तो रहने को क्या है।
गम-ए-सौदे में तेरा नाम आया था
दर्द आँखों से ये बहने को क्या है।
माना के ख़्वाहिशों का मुकाम था
दयारे-बज़्म भी सहने को क्या है।
समुंदर से ख़फ़ा होके वो सो गया
कश्ती को अब दहने को क्या है।
कोई बचाकर नाम रखा था वर्मा
शहरों में यूं घर ढ़हने को क्या है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जो दिल नहीं तो रहने को क्या है।
गम-ए-सौदे में तेरा नाम आया था
दर्द आँखों से ये बहने को क्या है।
माना के ख़्वाहिशों का मुकाम था
दयारे-बज़्म भी सहने को क्या है।
समुंदर से ख़फ़ा होके वो सो गया
कश्ती को अब दहने को क्या है।
कोई बचाकर नाम रखा था वर्मा
शहरों में यूं घर ढ़हने को क्या है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
 
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