उतने ही शिद्दत से दबाया था उसने गला मेरा
जाँ हलक में अटक जाएं और साँस भी ना टूटे।
मैं बेतहाशा भागता रहता था मंजिल मिलने से
मरा तो दुआ करा के अब एहसास भी ना टूटे।
बिलकुल ख़्वाब से दूर थे, रोशनी फैलाने वाले
बारिशे-आरज़ू औ' सोचते के प्यास भी ना टूटे।
मिट्टी में दफ़्न हैं सब इतिहास में चमकने वाले
पढ़ रहें हैं सब के बस अधूरी आस भी ना टूटे।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जाँ हलक में अटक जाएं और साँस भी ना टूटे।
मैं बेतहाशा भागता रहता था मंजिल मिलने से
मरा तो दुआ करा के अब एहसास भी ना टूटे।
बिलकुल ख़्वाब से दूर थे, रोशनी फैलाने वाले
बारिशे-आरज़ू औ' सोचते के प्यास भी ना टूटे।
मिट्टी में दफ़्न हैं सब इतिहास में चमकने वाले
पढ़ रहें हैं सब के बस अधूरी आस भी ना टूटे।
नितेश वर्मा
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