Monday, 5 September 2016

उतने ही शिद्दत से दबाया था उसने गला मेरा

उतने ही शिद्दत से दबाया था उसने गला मेरा
जाँ हलक में अटक जाएं और साँस भी ना टूटे।

मैं बेतहाशा भागता रहता था मंजिल मिलने से
मरा तो दुआ करा के अब एहसास भी ना टूटे।

बिलकुल ख़्वाब से दूर थे, रोशनी फैलाने वाले
बारिशे-आरज़ू औ' सोचते के प्यास भी ना टूटे।

मिट्टी में दफ़्न हैं सब इतिहास में चमकने वाले
पढ़ रहें हैं सब के बस अधूरी आस भी ना टूटे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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