मुझमें इतना गिला तो रहने दो फ़रमाबरदारों
वो छोड़ गई मुझे ये शिकायत बहुत ज़ुरुरी है।
मेरे चेहरे पर वीरानीयाँ उग आईं हैं बा-दस्तूर
तेरे चेहरे पर भी कुछ कम नहीं जी हुज़ूरी है।
ना तलाश कर तू ख़ुदको कहीं भटक जायेगा
ये पहचान ठिकाना नहीं बस इक सुरूरी है।
नजाने मैं क्या ढूंढता था ज़माने में सदियों से
मैं लापता हूँ ख़ुदसे मेरी यही एक मजबूरी है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
वो छोड़ गई मुझे ये शिकायत बहुत ज़ुरुरी है।
मेरे चेहरे पर वीरानीयाँ उग आईं हैं बा-दस्तूर
तेरे चेहरे पर भी कुछ कम नहीं जी हुज़ूरी है।
ना तलाश कर तू ख़ुदको कहीं भटक जायेगा
ये पहचान ठिकाना नहीं बस इक सुरूरी है।
नजाने मैं क्या ढूंढता था ज़माने में सदियों से
मैं लापता हूँ ख़ुदसे मेरी यही एक मजबूरी है।
नितेश वर्मा
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