बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
तुमको जो तुम्हारे मंजिल तक ले चले
तुम्हारे सफ़र की वो पांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
तुम्हारे हर इम्तिहान के दिनों में
जो तुम पर अक्सर चिल्लाती है
तुम्हारे सहेजे खूबसूरत से कंचो को
जो अक्सर बाहर फ़ेंक आती है
पापा से जो तुमको डाँट दिलवाती है
तुम्हारे सिक्के जो अक्सर चुराती है
पर हर सुबह-शाम दुआओं में तुम्हारी
सलामती की ख़ैर भी तो मनाती है
लहरों के बीच मझधारों में स्थिर सी वो
किसी अल्लहड़ पतवार की नाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
जिसकी आँखों में समुंदर भी डूबता है
इश्क़ भी जिसको हर मर्तबा चूमता है
जिसके संग होने पर तुम मुस्कुराते हो
जिसकी बातों में जग भी हार जाते हो
ख़ुदमें जो सुलझी पहेली सी दिखती है
तुमको जो सच्ची सहेली सी लगती है
वो तुम्हारे हिस्से की गर्म चाय होती है
बेहद दिलनुमाँ सी एक राय होती है
किसी बेतहाशा, बोझिल, बेचैन से
शहरों के बीच जैसे कोई गाँव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
झूठ से सख़्त नफ़रत है जिसको
तुम्हारे ख़ातिर सौ-सौ बोलती है
जिसे चिढ़न है किसी से भी मिलने पर
तुमसे बेसब्र कई दफ़ा लिपटती है
कभी किसी पतंग की तरह मचलती
जिसकी ड़ोर वो तुम्हारे हाथों में देती है
जिससे शरारत तुम्हारी कम नहीं होती
वो इक आवाज़ जो तुम्हारी भी होती है
धूप उसकी ही पायल छूकर ठंडक भरे
सर्दियों में जैसे गर्म अलाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
जो तुमसे कभी कुछ माँगती नहीं है
फिर बेमर्जी दिल में जो आ जाये उसके
अपना हक़ जताकर तुमसे छिन लेती है
कभी ख़्यालों में आकर गुदगुदाती है
कभी नमीं होकर आँखों से उतर जाती है
किसी रोज़ कलाई पर इक धागा बांधती है
फिर बिन बोलें जो सबकुछ कह जाती है
जिसको तुम्हारा हो जाना अज़ीज होता है
जो ख़ुदसे हार कर देदे अपनी जीत तुमको
ऐसी अद्भुत सी वो इक दांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
#HappyRakshaBandhan
A tribute to all loving sisters
तुमको जो तुम्हारे मंजिल तक ले चले
तुम्हारे सफ़र की वो पांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
तुम्हारे हर इम्तिहान के दिनों में
जो तुम पर अक्सर चिल्लाती है
तुम्हारे सहेजे खूबसूरत से कंचो को
जो अक्सर बाहर फ़ेंक आती है
पापा से जो तुमको डाँट दिलवाती है
तुम्हारे सिक्के जो अक्सर चुराती है
पर हर सुबह-शाम दुआओं में तुम्हारी
सलामती की ख़ैर भी तो मनाती है
लहरों के बीच मझधारों में स्थिर सी वो
किसी अल्लहड़ पतवार की नाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
जिसकी आँखों में समुंदर भी डूबता है
इश्क़ भी जिसको हर मर्तबा चूमता है
जिसके संग होने पर तुम मुस्कुराते हो
जिसकी बातों में जग भी हार जाते हो
ख़ुदमें जो सुलझी पहेली सी दिखती है
तुमको जो सच्ची सहेली सी लगती है
वो तुम्हारे हिस्से की गर्म चाय होती है
बेहद दिलनुमाँ सी एक राय होती है
किसी बेतहाशा, बोझिल, बेचैन से
शहरों के बीच जैसे कोई गाँव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
झूठ से सख़्त नफ़रत है जिसको
तुम्हारे ख़ातिर सौ-सौ बोलती है
जिसे चिढ़न है किसी से भी मिलने पर
तुमसे बेसब्र कई दफ़ा लिपटती है
कभी किसी पतंग की तरह मचलती
जिसकी ड़ोर वो तुम्हारे हाथों में देती है
जिससे शरारत तुम्हारी कम नहीं होती
वो इक आवाज़ जो तुम्हारी भी होती है
धूप उसकी ही पायल छूकर ठंडक भरे
सर्दियों में जैसे गर्म अलाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
जो तुमसे कभी कुछ माँगती नहीं है
फिर बेमर्जी दिल में जो आ जाये उसके
अपना हक़ जताकर तुमसे छिन लेती है
कभी ख़्यालों में आकर गुदगुदाती है
कभी नमीं होकर आँखों से उतर जाती है
किसी रोज़ कलाई पर इक धागा बांधती है
फिर बिन बोलें जो सबकुछ कह जाती है
जिसको तुम्हारा हो जाना अज़ीज होता है
जो ख़ुदसे हार कर देदे अपनी जीत तुमको
ऐसी अद्भुत सी वो इक दांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
#HappyRakshaBandhan
A tribute to all loving sisters
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