Monday, 5 September 2016

है घुप्प अँधेरा

है घुप्प अँधेरा
और तुम्हारे आने की आहट भी है
तारों में हल्की रोशनी हैं
हवाओं में तुम्हारी खनखनाहट भी है
बात पुरानी सी है
अरसों की बीती-बीती
ज़ुबाँ हौले-हौले से कुछ गुनगुनाएँ
और आँखों में इक धुंधलाहट भी है
हर शे'र के बाद
आवाज़ें गूंजती हैं चारों दिशाओं में
लफ़्ज़ों में जैसे इक कड़वाहट भी है
उग़ता कर लिबास फ़िर उतारा है
ज़िस्म-ए-दिल पे कई झुंझलाहट भी है
है घुप्प अँधेरा
और तुम्हारे आने की आहट भी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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