इतना भी सफ़र नहीं था मुश्किल मेरा
मुझमें ही लापता था पता शामिल मेरा।
मैं गुनाहों से ख़ुदको दूर रखने लगा हूँ
हुआ है इस तरह नाम ये कामिल मेरा।
हुनर तो आज कमरे में दम तोड़ती है
जुगाड़ से है रोशन शहर काबिल मेरा।
कुछेक बात ज़माने में असरदार भी है
इक शख़्स फ़िर हुआ है जाहिल मेरा।
बहुत दिनों से निगाहें सजाके बैठा था
अब आरज़ू है तुझसे होके मिल मेरा।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
मुझमें ही लापता था पता शामिल मेरा।
मैं गुनाहों से ख़ुदको दूर रखने लगा हूँ
हुआ है इस तरह नाम ये कामिल मेरा।
हुनर तो आज कमरे में दम तोड़ती है
जुगाड़ से है रोशन शहर काबिल मेरा।
कुछेक बात ज़माने में असरदार भी है
इक शख़्स फ़िर हुआ है जाहिल मेरा।
बहुत दिनों से निगाहें सजाके बैठा था
अब आरज़ू है तुझसे होके मिल मेरा।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment