उसके चेहरे की उदासी परेशान करती रही मुझे
ज़िन्दगी दिन भी मौत तक हैरान करती रही मुझे।
मैं दूसरों के दर्द पर चीख़ता रहता था ख़लाओं में
मेरे हिस्से जो लिपटी तो बेज़ुबान करती रही मुझे।
मेरे किसी प्रयास में कोई ज़िद नहीं छुपी होती है
बस मेरी हार हर बार बद्ज़ुबान करती रही मुझे।
मेरे क़मरे में कोई तस्वीर नहीं है जो बयां करे तू
हाले-दिल मर-मर के मेहरबान करती रही मुझे।
कभी किसी शौक से लिपटकर थामा था तुमको
तुम्हारी तसव्वुर बारहां कद्रदान करती रही मुझे।
माना मेरे इश्क़ में फ़ासले थे..उसे लौट जाना था
फिर वो क्यूं अपने ही दरमियान करती रही मुझे।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
ज़िन्दगी दिन भी मौत तक हैरान करती रही मुझे।
मैं दूसरों के दर्द पर चीख़ता रहता था ख़लाओं में
मेरे हिस्से जो लिपटी तो बेज़ुबान करती रही मुझे।
मेरे किसी प्रयास में कोई ज़िद नहीं छुपी होती है
बस मेरी हार हर बार बद्ज़ुबान करती रही मुझे।
मेरे क़मरे में कोई तस्वीर नहीं है जो बयां करे तू
हाले-दिल मर-मर के मेहरबान करती रही मुझे।
कभी किसी शौक से लिपटकर थामा था तुमको
तुम्हारी तसव्वुर बारहां कद्रदान करती रही मुझे।
माना मेरे इश्क़ में फ़ासले थे..उसे लौट जाना था
फिर वो क्यूं अपने ही दरमियान करती रही मुझे।
नितेश वर्मा
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