बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना
इस तार्किक उम्र में भी आकर चुप रहना
किसी वादो-विवाद से मुकरना
सच में आसान नहीं होता है कुछ मानना
जैसे अक्सर चुपचाप मान लिया करते थें
पुरानी गणित की क़िताबों में
उलझे कई सवालों के ज़वाबों को एक्स
क्या ये वही एक्स है जो गुजर गया है
या मुझसे छूट गया
या मैंने ही जिसको गुजरने दिया
क्या अब मैं ज्यादा परिपक्व हो गया हूँ
जो ख़याल में हूँ इस उबाऊ से एक्स के
वो एक्स, जो मुझे कभी समझ नहीं पाया
दूर होकर भी कई रात लौटकर रुलाया
जिसने मेरे अंदर के इंसान को मार दिया
या मेरे गले में जो फ़ंदा छोड़कर है गया
मेरी शामे जो उदास करके आगे बढ़ गया
क्या मैं उस एक्स पीछे हूँ.. एक वक़्त से
क्या मैं ख़ुदको तलाश रहा हूँ उस एक्स में
या मैं ये मान बैठा हूँ
उस अतीत को आज का व्यंग्य इक
पर फ़िर सोचता हूँ के क्या आसान है ये
बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
इस तार्किक उम्र में भी आकर चुप रहना
किसी वादो-विवाद से मुकरना
सच में आसान नहीं होता है कुछ मानना
जैसे अक्सर चुपचाप मान लिया करते थें
पुरानी गणित की क़िताबों में
उलझे कई सवालों के ज़वाबों को एक्स
क्या ये वही एक्स है जो गुजर गया है
या मुझसे छूट गया
या मैंने ही जिसको गुजरने दिया
क्या अब मैं ज्यादा परिपक्व हो गया हूँ
जो ख़याल में हूँ इस उबाऊ से एक्स के
वो एक्स, जो मुझे कभी समझ नहीं पाया
दूर होकर भी कई रात लौटकर रुलाया
जिसने मेरे अंदर के इंसान को मार दिया
या मेरे गले में जो फ़ंदा छोड़कर है गया
मेरी शामे जो उदास करके आगे बढ़ गया
क्या मैं उस एक्स पीछे हूँ.. एक वक़्त से
क्या मैं ख़ुदको तलाश रहा हूँ उस एक्स में
या मैं ये मान बैठा हूँ
उस अतीत को आज का व्यंग्य इक
पर फ़िर सोचता हूँ के क्या आसान है ये
बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
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