Monday, 30 June 2014

..तुम्हारी बातें..

..तुम्हारी बातें..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..
..ना जानें तुम क्या समझाती थीं..
..कहना चाहती थीं कुछ..
..खुद से परेशां कह जाती थीं कुछ..

..मैं समझता था सारी बातें तुम्हारी..
..नज़र झुका के..
..एक साँस में जो तुम कहती थीं परेशानी सारी..
..हौले-हौले हवा का झोंका जो आता था..
..ज़ुल्फ़ों का तुम्हारी काली घटा बना जाता था..
..तुम्हारी अदाओं में कुछ ऐसा था..
..जैसें किसी पुरानें घाव पे कोई मरहम था..

..सबसे निराली थीं मुस्कान तुम्हारी..
..चेहरें पे छाई रहती थीं..
..हर-वक्त एक अरमान पुरानी..
..मैं तुम्हें देख बदहाली से कभी गुजरा ही नहीं..
..तुम वो मूरत थीं..
..जिसमें कई दुआओं की मिन्नत बसी थीं..

..हल्की सी खरोंच से घबरा जाती थीं..
..तुम थीं मेरें मुहब्बत के करीब इतनी..
..हर रात बसर मुझमें कर जाती थीं..
..मैं माँगता था तुमसे अपनें हक का प्यार..
..लब से लब लगा के..
..खामोश तुम कर जाती थीं..

..तुम्हारी बातें..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..!

..नितेश वर्मा..

..मर जाता हैं कोई तो रोतें हैं सब..

..अंज़ान राहों से गुजरतें हैं सब..
..आज़ भी मुहब्बत करतें हैं सब..

..कर देता हैं पूरी जो दुआ हैं सब..
..रब के सामनें घुटने टेकते हैं सब..

..होगा क्या सहीं सोचतें हैं सब..
..जब दुश्मनों से दोस्ती करते हैं सब..

..मैं तकलीफ़ में हूँ तो खुश होतें हैं सब..
..मर जाता हैं कोई तो रोतें हैं सब..

..कैसी दुनियां और कैसे नज़ारें हैं सब..
..पडी हलक में जान तो रोतें हैं सब..

..आँख में आँख डाल झूठ बोलतें हैं सब..
..होता क्या हैं हर्श नहीं देखतें हैं सब..

..मंज़ूर-ए-खुदा, मंज़ूर-ए-इश्क हैं सब..
..तो फ़िर क्यूं ज़मानें से नफ़रत करतें हैं सब..

..तन्हाइयों में भी साथ देते हैं सब..
..जब बात अदब से करतें हैं सब..!

..नितेश वर्मा..

Friday, 27 June 2014

..आशिक..

आशिकों का क्या होता हैं। पहलें प्यार करनें या पानें को तरसतें और जब वो मिल जाता हैं तो उससे छुटकारा पानें को तरसतें हैं। ऐसे आशिक ; आशिक नहीं। दिल से उनका कोई नाता नहीं होता, जमीर उनका सोया हुआ होता हैं। वो अधीर और अज़िम्मेदार होतें हैं। क्या कहूं, युग कलयुग हैं इसे देख के बस इतना ही कह सकता हूँ आप भी सोच-समझ के ही प्यार करो। आज़-कल प्यार,इश्क,मोहब्बत के नाम पे ना जानें क्या कुछ हो रहा हैं।समय ही वैसा हैं अब दिल भी सोच-समझ के ही लगाना पडेगा।

..हर बात पे ये दिल रोता हैं..
..खोया हैं मैंनें ना जानें ऐसा क्या..
..जो हर रात को ये रोता हैं..

..सँभालूं कितना भी इसे मैं..
..बेसबब अँधेरों में रोता हैं ये..

..इस उफ़न भरी गर्मी में..
..दरियां के दरियां सूख गएं..
..पता ना ये इतनी आँसू बहाता हैं कैसे..

..मैंनें हर जुगाड करके देख लिया..
..टूटा हैं दिल लडकी से..
..तो लडकी पटा कर देख लिया..
..मिलती नहीं कमबख्त इस दिल को सुकूं..
..हर जगह फ़िर से दिल लगाकर देख लिया..

..मुहब्बत में कैसी होती हैं इम्ताहन दोस्तों..
..ये मत पूछों..
..होता हैं सवाल आँखों से..
..जुबां कुछ कह नहीं पाती..

..बहोत नाज़ुक होता हैं ये आशिकी का रिश्ता..
..हर बात पे जां निकल आती हैं..
..होगा तुम्हें गर किसे से प्यार..
..तो तुम भी समझ जाओगे..
..उल्फ़त में जीना कैसा होता हैं..

..हर बात पे ये दिल रोता हैं..
..खोया हैं मैंनें ना जानें ऐसा क्या..
..जो हर रात को ये रोता हैं..!

..नितेश वर्मा..

4th Year.. I Had To Write.

#A Story, About An Engineer Of Fourth Year.

#Comming From Middle Class Family.

#Last Year, Family Pressures, Responsibilities, Not Placed In That Year, Full On Depression.

#Loved A Girl, But Fails To Propose, She Went Away From His Life.

#No Hopes, No Money, But Having Good Ideas, Great Thinker, Philosopher.

#Decided To Make A Suicide Note Before His Death.

#But Eventually His Suicide Note Idea Becomes A Suicide Novel Idea.

#Starts From Beginning And Write To His Ends.

#Story Starts Actually From Here, A Boy Of Same Situation Reads His Novel And Felt It. And Change His Idea Towards His Death.

#It Is Not Ending Of This story, His Idea, His Novel Saves Thousands Of life Per Year.

#His Novel Also Build Thousands Of life Per Year.

#But Matter Is That, He Is Not Anymore.

#By Making His Suicide Novel Idea.. He Slaps To Everyone; Luck, Time, God And Whatever You Think.

#Novel theme: [Death Is Not The Permanent Solution Of Your Problems. After You It Will Continue..]


Almost Written 70%, Now Keep Udating Time-To-Time With You.

..राम जैसे हो बेटे..

..यहाँ ज़िस्मों से लगे फ़िरते हैं सब..
..मुहब्बत हो रूह से..
..वो मुहब्ब्बत अब कहीं नहीं..

..कतरा-कतरा समेटें फ़िरते हैं सब..
..वसीहत हो खानदानी..
..वो दौलत अब कहीं नहीं..

..सात समुन्दर पार कर सके परिन्दें..
..हौसलें भरें हो पर..
..वो अब कहीं नहीं..

..भूखें पेट मरतें हैं गरीब यहाँ..
..बरकत की दुआ ले सके..
..कोई शक्स अब कहीं नहीं..

..पानी-पानी को मारें फ़िरते हैं यहाँ सब..
..राम जैसे हो बेटे..
..वो वक्त अब कहीं नहीं..

..नितेश वर्मा..

..थोडी देर और ठहर के जा..

..थोडी देर और ठहर के जा..
..के बातें आज़ भी वो बाकी हैं..
..सुनाना हैं..
..जो हैं बीता हुआ..
..गज़ल जुबां पे वो आज़ भी बाकी हैं..
..सीनें से जैसे तुम्हें लगाया करता था..
..आज़ जो तुम नहीं..
..तो सीनें पे ये बोझ भारी हैं..
..गलत बातों से..
..ज़मानें के बहकावों से..
..तुमसे जो मैं बेरूख हुआ..
..मेरी आँखों में देखों तुम..
..पछतावा आज़ भी वो बाकी हैं..
..थोडी देर और ठहर के जा..
..के बातें आज़ भी वो बाकी हैं..

..नितेश वर्मा..

Thursday, 26 June 2014

Nitesh Verma Poetry

[1] ..बर्बाद हुआ वो शहर हूँ..
..जल गया हूँ तो क्या..
..अंदर हूँ आज भी सबके..
..खाख हो गया हूँ तो क्या..

[2] ..कोई इंनकारें इस बात से तो वो और बात हैं..
..उसकी यादों में तो मैनें खुद को भूलाया हैं..!

..नितेश वर्मा..

..जग में नाम कमाना हैं..

..करना हैं हासिल मुझे..
..हर मुकाम को पाना हैं..
..जीतना हैं जंग अपनी..
..जग में नाम कमाना हैं..

..बैठा तो मैं कब से रहा था..
..सोके अब ना कुछ खोना हैं..
..किया हैं जो खुद से वादा..
..पूरा उसे करना हैं..

..जिसकों जो कहना हैं..
..कह लो मेरे यार..
..जब मुहब्बत से ना डरा..
..तो मौत से क्या डरना हैं..!

..नितेश वर्मा..

Wednesday, 25 June 2014

..कोई बात नहीं दिल हैं सयाना..

..मिलती नहीं कामयाबी..
..हर मंजिल से गुजर के देख लिया..

..होते नहीं वो मेरें..
..मैंनें हर मंजर से गुजर के देख लिया..

..अफसोह रहती थीं..
..लेके उन्हें दिल में कहीं..
..आज़ गुमनाम खताओं से भी..
..मैंनें गुजर के देख लिया..

..कितनी शिद्दत से..
..कुछ लिक्खा था उनकी यादों में..
..नाराज़ हुएं जो..
..तो उसे जला के भी देख लिया..

..हर कांड करके देख लिया..
..फुरसत से मिल जाएं वो कभी..
..मैनें दिन में रात करके देख लिया..

..खोया रहता हूँ जिस कदर मैं उनकी यादों में..
..वहम तो नहीं..
..हाथों को दिल पर..
..रख कर भी देख लिया..

..मेरे मरनें के बाद..
..वो मिलनें मुझसे आऐंगे..
..इस सोच में..
..ज़िन्दगी डूबों कर भी देख लिया..

..हर कोशिश करके देख लिया..
..किस्मत में हैं परेशानी..
..हर मंदिर से गुजर के देख लिया..

..कोई बात नहीं दिल हैं सयाना..
..टूटा हैं..
..पर रोता नहीं..
..मैनें उसके रूह से गुजर के देख लिया..!

...नितेश वर्मा..

..ये लफ़्ज़ नहीं जो मँहगें किताब में रहें..

..हैं वो नाराज़ तो नाराज़ रहें..
..ये महोब्बत नहीं जो सालों-साल रहें..

..बिकता हैं तो बिक जाएं वो भी किसी बाज़ार में..
..ये लफ़्ज़ नहीं जो मँहगें किताब में रहें..!

..नितेश वर्मा..

..दो भारत..

   

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इस देश में दो भारत बसतें हैं। अमीरों का भारत देश, गरीबों का भारत देश। अमीर और अमीर होतें जा रहें हैं वही गरीब और गरीबी में धँसतें जा रहें है। कारण आप कुछ भी कह लिजीए प्रशासन,समय,अनैतिकता या किस्मत। गरीब आखिर क्यूं गरीब हो रहें हैं? वज़ह क्या हैं? क्या वे प्रजातंत्र से दूर हैं? सरकार की दी सुविधाएँ [शिक्षा/राशन] उन तक पहूँच पानें में असमर्थ हैं? या फ़िर इन्हें उनकें पास तक आनें ही नहीं दिया जा रहा। कोट-कचहरी किसी और की देख-रेख में चल रही हैं या चलानें वाला हाथ ही सही नहीं। वजह जो भी हो लेकिन समझ इस बात की हैं आखिर यें क्यूं हैं? इस प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाहतें हैं। आइयें हम इसे एक कहानी के जरिएं हम इसके एक कारण को विवेचित करतें हैं। शायद ये तुकबंद ना हो परंतु सहसा रोमांचक जरूर होगा।

राम शहर की दूसरी ओर की बस्ती में रहता हैं। वो गरीबों की बस्ती का एकमात्र ऐसा लडका हैं जो सरकारी विधालय जा सकनें में सक्षम हैं और अन्य सबो के साथ कुछ ना कुछ परेशानियां जुडी हुई हैं। राम के परिवार में उसके माता-पिता और दो छोटी बहनें हैं। राम के पिता बगल के एक फेक्ट्री में मज़दूर का काम करतें हैं। वो अपनी ज़िन्दगी से परेशान अपनें गरीबी को भूला के सोनें के लिए कभी-कभी नशा भी करतें हैं। और इधर राम ये सोचता हैं जब वो पढ के बडा आदमी बन जाऐगा तो सारी गरीबी मिट जाऐंगी वो अपनें कस्बें के लोगों को शहर में एक पहचान दिलवाऐगा। वक्त बीतता गया राम की पढाई पूरी होती गई और दूसरी तरफ़ राम के पिता की परेशानियाँ बढती गई [बेटी की शादी,बेटे की आगे की शिक्षा]। अब राम के पिता रोज के अपनें कमाई का आधा प्रतिशत तक दारू में बर्बाद करतें हैं। स्वास्थय अब उनका साथ नहीं दे रहा, और एक समय पर आ के उनकी मृत्यु हो जाती हैं। काफी दुखद अनुभव पर दस्तूर को शायद यहीं मंज़ूर था।

अब घर की हालत बिगडती जा रहीं। गरीब घर की स्त्री होनें के कारण राम की माँ पढी-लिखी नहीं थीं और इधर राम नहीं चाहता था की उसकी माँ उसके होते हुएं किसी असुरक्षित जगह कार्यरत हो। वो घर की हालत को देखते हुएं अपनें शिक्षा को अधूरा छोडतें हुएं फिर से अपनें पिता के जगह ही कार्यरत हो जाता हैं। आखिर उस नौवें पास लडके को कोई और काम भी क्या मिल सकता हैं। धीरें-धीरें वो अपनें घर की बागडोर अपनें पे सँभाल लेता है, परंतु दिल में उसकी ये कसक बनी रहती हैं की वो कुछ कर ना सका। इस गम में वो इतना डूबा रहता है की वो भी इसे भूलानें के लिए मदिरा का सहारा लेता रहता हैं। यधपि वो नौवीं स्तर तक पढा हैं, परंतु जब परिवेश ही सहीं ना हो तो क्या हो सकता हैं।

अपनें बहनों की जैसे-तैसे शादी करनें के बाद घर के देख-रेख के लिए सगे-संबंधी और परिवार वालें मिल के उसकी शादी वहीं के किसी लडकी से करा देते हैं। वो ना चाहतें हुएं भी मजबूर हैं, आखिर उसके पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं हैं। वो आगे पढना चाहता हैं पर जिम्मेदारियों के बोझ-तले दबा पडा हैं। जब वो पढेगा तो कमा के लाऐगा कौन? स्थिति इतनी गंभीर हैं की किसी की भी सोच का कोई हल नहीं निकलता। शादी हो जानें के बाद और परेशानियाँ। घर पैसों से ही चलता हैं, अगर पेट में दाना ना हो तो राम का नाम भी नहीं लिया जाता।

कुछ दिनों बाद राम का एक बेटा होता हैं वो अपनें और शहर के बीच के भेद-भाव को देखता हैं तो सोचता हैं ऐसा क्यूं हैं? धीरें-धीरें वो सभी बातों को समझनें लगता हैं और फ़िर उसकी सोच राम के पास ही जा के ठहर जाती हैं के वो भी इस भेद-भाव की स्थिति को बदलेगा और शहर के दूसरें तरफ़ भी अपना एक मकान बनवाऐगां। परंतु उसकी सोच, सोच बनके ही रह जाती हैं। राम अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछा छुडा के यहां से चला जाता हैं और उसका बेटा उसी की तरह आगे ज़िन्दगी जीनें को मज़बूर हैं। चाह के भी कुछ कर नहीं सकता।

आखिर इन सब का ज़िम्मेदार कौन हैं? क्या अगर जो सरकार वोट माँगनें उनके पास जाती हैं वो उनके स्थिति से अनभिग्न हैं? क्या वो कुछ नहीं कर सकते? हमारें समाज़ में इतनें बहुचर्चित सदस्य हैं क्या वो चाहें तो कुछ बदलाव नहीं कर सकतें क्या? लेकिन पता ना समस्यां क्या हैं? बनती बातें ना जानें कहां आके रूक जाती हैं। कुछ समझ नहीं आता। मैं कोई बदलाव तो एका-एक कर नहीं सकता परंतु प्रयास इस दिशा में जारी हैं। कृप्या आप भी इनकें संदर्भ में सोचें एवं कोई मदद करें।


टिप्पणी: हमें अमीरों की अमीरी से कोई परेशानी नहीं हैं। यह लेख बस गरीबों की सोचनीय स्थिति का वर्णन करती हैं। आपकी अमीरी देश के हितकर में हैं। परंतु यह लेख देश की अर्थव्यवस्था को दर्शानें का प्रयास नहीं करती हैं।

Tuesday, 24 June 2014

..ठंडी फुहारों की बारिश..

कडाके की गर्मी चल रही हैं। पूरा दिन परेशां रहनें पे घर में आओ तो ए सी भी वो सूकूं नहीं देती। खिडकियां खोलूं तो गर्म हवाएं जीं को बेरूख सी बना देती हैं। इस परेशानी में कुछ सूझता भी नहीं। अपना शहर भी अपना लगता नहीं। लेकिन आज़ बात इन सबसे अलग हैं। ठंडी हवाएं चल रहीं हैं, बारिशों के बूंदें खिडकियों से अंदर आ रहे हैं। अँधेरी रौशनी में धीमा बल्ब जल रहा हैं। चेहरें पे ना जानें कितने दिनों बाद ये सूकूं आया हैं और दिल आज़ बस अपनें शहर को जीनें में लगा हैं।

..ये बताना मुश्किल हैं..
..तुम हो मुझमें कैसे..
..ये दिखाना मुश्किल हैं..

..गर्म अँधेरी रातों में..
..होती हैं जैसे ठंडी फुहारों की बारिश..
..जी को होता हैं सुकूं कितना..
..समझाना मुश्किल हैं..!

..नितेश वर्मा..

..लव-ट्रेंगल.. [Love-triangle]

प्रेम की कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं होती। ये इंसान के जुबानों से बांधा नहीं जा सकता। मगर कहतें हैं प्यार जितना बाँटो बढता हैं मगर जब ये इंसानों में बंटता हैं तो समझ पाना मुश्किल होता हैं। क्या कोई कभी ये चाहेगा की उनके और उनकें महबूब के बीच कोई तीसरा भी आए। बहोत मुश्किल होता हैं इसे सँभालना क्यूंकि तीसरा व्यक्ति जिसे अपना बनाना चाहता हैं वो अपनें शातिरता का कोई प्रमाण उनके सामनें नहीं रखता। वो अपनें चालों से बस उस दूसरें को वहाँ से हटाना चाहता हैं और पहले के नज़र में अच्छा बना रहता हैं। यहीं कारण हैं की इसे सब समझ नहीं पाते जो इस दौर से गुजरता हैं वो अपनी मुश्किलात सबको तो दूर अपने हम-दर्द को भी नहीं बता पाता क्यूंकि उसकी नज़र में तो वो दूध का धूला हैं। स्थिति इतनी गंभीर होती चली जाती हैं की वो तीसरा व्यक्ति उन दोनों के बीच एक नयी जगह बनानें में कामयाब हो जाता हैं। धीरें-धीरें स्थिति बिगडती हैं दूसरें को ये बर्दास्त नहीं होता के उनके बीच कोई और आएं। वो चाह-कर भी अपनें प्यार को छोड नहीं पाता। तीसरा व्यक्ति तो जान के उस आग में कूदता हैं तो उसके जानें का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। पहला इंसान दोनों की स्थिति से अनभिग्न वो अपनी वहीं स्थिति बनाएं रखता हैं जैसे शादी के बराती और मय्यत के हूजूम दोनों स्थिति में उन्हें पेट भरना होता हैं जिसमें वो कामयाब होतें हैं। कहनें का मतलब ये हैं की पहला व्यक्ति सभी गमों से दूर होता हैं और दोनों के प्यार के करीब। बस परेशानी उसे ये होती हैं किसे अपनें साथ रखें और किसे इंकार करें। आज की सबसे बडी समस्यां यहीं हैं जिसे आम भाषा में "लव-ट्रेंगल" कहतें हैं।

..गज़ल..

..कितना कमज़र्फ़ हैं के वो कहता हैं..
..भूल जाओ उसे जिसमें वो रहता हैं..

..वो हैं उसके आँखों में बसी..
..मैं फोड लूं आँखों वो कहता हैं..

..जुल्फ़ों के नीचे आशियाँ हैं उसकें..
..भरी धूप हर्श होगा क्या मेरा वो कहता हैं..

..वो जन्नत बना यहां से चलेगा मीलों दूर..
..मैं हूँ फकीर माँगूगां भीख वो कहता हैं..

..हाथों में हाथ लिए भरें बाज़ार चलता हैं..
..मैं हूँ अज़नबी दिख जाऊँ तो वो कहता हैं..

..अब सजदें का भी मेरा कोई असर नहीं..
..इबादत जो करू तो आसार वो कहता हैं..

..आँखें धूमिल पडी तो परेशां हो चला पानी को..
..कीचड नहीं मौत हूँ मौत मेरा वो कहता हैं..!


..नितेश वर्मा..

..भूल गए हैं सब रस्ते दरहो-हरम के..

..भूल गए हैं सब रस्ते दरहो-हरम के..
..गीता-कुरान के इंसा नज़र नही आते..

..माँ बेटे को पुकारती हैं..
..खुद से हैं परेशां फ़र्ज़ निभानें नहीं आते..

..माँग में उसके नाम का सिन्दूर सजाएँ बैठी हैं..
..कैसी हैं तंग हालत शौहर उसके मिलनें नही आते..

..सज़ रहें हैं घर के घर मौत पे मैं बैठा हूँ..
..होंठों पे हैं हे राम पर बोलने नहीं आते..

..लड रहें हैं ज़िन्दगी-मौत से सब के सब..
..उल्फ़त में हैं जान पर खज़ानें खोलने नहीं आते..

..सोया हैं चैंन की नींद मेरे हिस्सों का हक मार..
..कितना बेबस हूँ चाहता हूँ पर होश खोलनें नहीं आते..!


..नितेश वर्मा..

Monday, 23 June 2014

..शहर के शहर जल गए बारिशों में जिस तरह..

..वो डूबे अपनें इश्क में कुछ इस तरह..
..शहर के शहर जल गए बारिशों में जिस तरह..

..वो खोयें रहें खुद में कुछ इस तरह..
..मय्यत की शोर गुजर गयी अँधेरी रातों में जिस तरह..!

..नितेश वर्मा..

..कहते हो पूछ लो मेरे बारें में कहीं तुम..

..दर्द हैं तो समेट के दिखाओ..
..इश्क हैं तो करके दिखाओ..
..कहते हो पूछ लो मेरे बारें में कहीं तुम..
..रहने दो..
..जो भी हो तुम सामने होकर दिखाओ..!

..नितेश वर्मा.

Sunday, 22 June 2014

हाशमी तुमसा कोई देखा नहीं कही

कोई बैड-ब्याँय तो कोई घनचक्कर समझता हैं
द-किलर का हैं वो शंहशाह ये दुनियां समझता हैं

रूठता नहीं वो किसी के बातों से
दिया हैं दिल तो सब समझता हैं
दिल हैं उसका जन्नत ये ज़हर कहता हैं

फूट-पाथ पे बिताएं हैं रातें कई
मर्डर के सीरीज़ दिखाएं हैं कई
अक्सर रस से गुजरता हैं वो
दिल तो बच्चा हैं समझता हैं वो

आशिक बनाया आपने कहते हैं सब
दिलों पे हैं जमाया राज कहतें हैं सब
अवारापन की जो बातें बताई हैंरा हैं सब

कैसे हो इतनें शातिर
हाशमी तुमसा कोई देखा नहीं कही
आज राजा नटवरलाल तुम्हें कहतें हैं सब.

..नितेश वर्मा..


..तौबा किया करता था जिस कुरान से..

..सारें के सारें राज़ उल्झ के आ गए..
..देखा जब तस्बीर में तस्वीर..
..तो होश उड के आ गए..

..बनाया हर बच्चें को अपनें मकाँ की तरह..
..आज़ पडे हैं जान को..
..तो आँख भर के आ गए..

..तौबा किया करता था जिस कुरान से..
..पडी हलक में जान..
..तो बिस्मिल्लाह निकल के आ गए..

..हम सुनाएं क्या दर्द-ए-हाल अपना..
..दीदार को तेरे..
..हम रूखसत पे आ गए..

..हम रूठे सही पर घर को आ गए..
..जैसे समुन्दर से कटकर रेंत रस्तें आ गए..!

..नितेश वर्मा..

बेटियाँ

यह कविता उन लोगें के दयनीय स्थिति का वर्णन करती हैं जो अपनें ही बच्चों में भेद-भाव करतें हैं। क्या होता हैं जब वो देखतें हैं की वो अपनें बेटें के भविष्य को बनानें के चक्कर में अपने बेटी को ले डूबे हैं। समय आनें पे उनकी सोच गलत हो जाती है। उम्मीदें खाख़ हो जाती है। बेटे को पढा देंगे तो आगें वो भविष्य में भी काम आऐगा, बेटी की शादी भी करा देगा वगैहरा-वगैहरा। परंतु जहाँ तक हम देखे तो हमें अधिकतन यहीं सूचना प्राप्त होती हैं की वो किसी मजबूरी या फ़िर किसी माशूका की पल्लू से बँधें पडे हैं। ज़िम्मेदारियाँ निभानें में वो असमर्थ हैं। परंतु इस बात से किसका क्या बिगडेगा? बाप कुछ दिन सोचेगा, माँ रोतें-रोते मर जाऐगी, सगे-संबंधी को कोई मतलब नहीं और भाई तो डूबा पडा ही हैं। लेकिन बेटी इस चक्कर में पिसी जाऐगी। जो बच्ची बचपन से परित्याग करतें आई हैं आगें भी उसके किस्मत में दुखों का ही पहाड हैं। इसलिए आप अपनें बेटे को काबिल बनाओं पर बेटियों को इतना पढा-लिखा दो की वो ऐसा दिन कभी ना देखे ना आप उसकों दुखी देख चिंतित हो, आखिर वो भी आपके अपनें हिस्सें की हैं। शिक्षा इंसान को जीनें का महत्तव बताती एवं उस काबिल बनाती हैं कि आपकी बेटियाँ आसमानों पे नजर आती हैं।




..अंगन के कंघन बने नहीं.. [अंगन = स्त्री]
..पिया घर जानें हैं..
..माँ हैं बिलखी पडी..
..बाप महाजन के सहारें हैं..

..किस्मत की अडचन बखूबी हैं..
..भाई हैं बेबस..
..घर में बैठी जो बीबी हैं..

..हाथ उठा के कोई देता नहीं..
..किस्मत की हैं अभागन..
..बेटी जो घर ले डूबी हैं..

..कैसे बताऊँ सजाया मैनें जो बाग..
..सँवारें हर पत्तें को..
..टूटें हैं शाख कीमती थें जो हमारें..

..सब खुद से परेशां रहते हैं..
..बेटी हैं मेरी खामोश..
..निगाहें ये मेरे कहतें हैं..

..अँधेरें में ना जानें क्या करती हैं..
..भींगें हैं दामन उसके..
..आँखें ये कहती हैं..

..कैसे करू उसके हक में कुछ..
..आज सूझता नहीं..
..मैं हूँ बेबस खुदा ये समझता नहीं..

..जैसे-तैसे..
..कुछ खुदा तो कुछ खुद को कोस के..
..ब्याही बेटी ये सोच के..
..घर आँगन कहीं और के जाऐगी..
..बेटी मेरी बहू जैसी मेरी किस्मत पाऐगी..

..विदा किया तो आँखें भर आई..
..बेटी से आँखें ना मिल पाई..
..आँखें समुन्दर हो गई..
..दिल बे-अवाज़..

..मैंनें कब का उसे रूखसत कर दिया.. [रूखसत = विदाई]
..दिल पर फ़िर भी बैठें हैं गहरें पत्थर आज..!

..नितेश वर्मा..

Saturday, 21 June 2014

..बेटियाँ..

..कहानियों से निकल कर जुबानों तक चली आई हैं..
..बेटियाँ मकानों से निकल कर आसमानों तक चली आई हैं..

..बुलन्दियों पे भी हैं उनका हिसाब बराबर..
..बकवासों से निकल कर किताबों तक चली आई हैं..

..आँखों की नमीं दर्दों की आह!
..बेटियाँ बिछावन से निकल कर जमानें तक चली आई हैं..

..पहरा लगा के रखता था जो तबका समाजी..
..बेटियाँ रसोइयों से निकल कर प्रशासन तक चली आई हैं..

..अब कोई खता तुम भी करो तो सँभल जाओ वर्मा..
..बेटियाँ सौदों से निकल कर ज़मींदारी तक चली आई हैं..!

..नितेश वर्मा..

..टूट जाता वो तस्वीर जो आँखों में चूर था..

..सब मंजूर था इश्क में जब दिल चूर था..
..चाहता था करना जिसे मैं अपना वो गैरों में चूर था..

..मैं देखता हर वक्त जिसे वो नशें में कही और चूर था..
..मदहोश था देख जिसे मैं वो होश में कही और चूर था..

..मैं बताता अपनें हर हिस्सें की बात..
..पर महफ़िल थी बडी वो कही और चूर था..

..वो डालते रहें किसे के बाहों में बाहें देख मुझे..
..गले में था जो मेरे फ़ंदा वो कही और चूर था..

..क्या होती हैं मुहब्बत गर ऐसे कोई समझाता..
..होता सही टूट जाता वो तस्वीर जो आँखों में चूर था..!

..नितेश वर्मा..



#EnglishVersion

Sab Manjoor Tha Ishq Me Jab Dil Choor Tha
Chahta Tha Karna Jise Main Apna Wo Gairo Me Choor Tha

Main Dekhta Har Wakt Jise Wo Nashe Me Kahi Aur Choor Tha
Madhosh Tha Dekh Jise Main Wo Hosh Me Kahi Aur Choor Tha

Main Batata Apne Har Hisse Ki Baat
Par Mehfil Thi Badi Wo Kahi Aur Choor Tha

Wo Dalte Rahe Kisi Ke Baanhoein Me Baahein Dekh Mujhe
Gale Me Tha Jo Mere Fanda Wo kahi Aur Choor Tha

Kya Hoti Hai Muhabbat Gar Aise Koi Samjhata
Hota Sahi Toot Jata Wo Tasveer Jo Aankhoein Me Choor Tha.

Nitesh Verma

Friday, 20 June 2014

Nitesh Verma Poetry

..समझतें है सब सयानें हैं सब..
..किस्सें हैं पुरानें ये कहतें है सब..

..सुना हैं सबनें वो बात..
..सुना जो तुमनें कल की रात..

..कोई यहाँ अब शोर नहीं करता..
..बेवजह कोई यहां अब  टोर नहीं करता..

..करतें थें जो उँगलियां सब..
..हलक में हैं पडी जान रोते हैं सब..

..सब के सब रस्तें आ गए..
..निकलें थें जो शहजादें लौट कस्बें आ गए..

..क्या होगा इस मुल्क का..
..बेचनें बेटियां बाप रस्तें आ गए..!

..नितेश वर्मा..



#EnglishVersion

Samajhate Hai Sab Sayane Hai Sab
Kisse Hai Purane Ye Kahte hai sab

Suna Hai Sabne Wo Baat
Suna Jo Tumne Kal Ki Raat

Koi Yaha Ab Shor Nahi Karta
Bewajah Koi Yaha Ab Tor Nahi Karta

Karte The Jo Ungliya Sab
Halak Me Hai Padi Jaan Rote Hai Sab

Sab Ke Sab Raste Aa Gaye
Nikale The Jo Shahjade Laut Kasbe Aa Gaye

Kya Hoga Is Mulk Ka
Bechne Betiya Baap Raste Aa Gaye.

Nitesh Verma

https://www.facebook.com/Niteshvermapoetry

..अश्रू हैं बहे पडे..

..अश्रू हैं बहे पडे..
..हिस्सें सब के लगे पडे..
..रोता हैं हर शक्स इस शहर का..
..महफ़िल हैं कैसा सब हैं खुद में लगे पडे..!

#EnglishVersion

Ashru Hai Bahe Pade
Hisse Sab Ke Lage Pade
Rota Hai Har Saksh Is Shahar Ka
Mahfil Hai Kaisa Sab Hai Khud Me Lage Pade

बेचैनियां ये थमेगी कब

आज कुछ लिखना चाहता नहीं। आज बहोत उदास हूँ। कारण, वो मेरें अपनें हैं नाम बताना नहीं चाहता। रोना चाहता हूँ पर नजर में आ जाऊगाँ, आगे किसे क्या समझाऊगाँ? किसे उन आसूओं का ज़िम्मेदार बताऊगाँ? दिल हैं टूटा बेवजह कैसे किसे क्या बताऊगाँ? बात कोई नयी नहीं हैं पर आज हालत सँभाल की नहीं हैं। चाहता हूँ सब बोलूं पर खामोशी सँभालें हैं सब कैसे तोडू समझ नहीं आता। शायद आज की रात बहोत अज़ीब होगी ना जानें क्या होगा? दिल परेशान हैं। आज वक्त भारी हो चला हैं। अंधेरी रात अपनें साथ भयानक तूफ़ां ले आयी हैं। सब बिगडा पडा हैं दिल भी और जान भी। कौन इसे सँभालेगा कुछ पता नहीं। बेचैनियां ये थमेगी कब कहना बहोत मुश्किल हैं। सब आज मेरें खिलाफ हैं मैं आज़ बेबस, बेसहारा, थमा पडा हूँ ना जानें कौन इसे सही करेगा। आँखें नम हैं अब कुछ लिखा जाता नहीं.. दिल उदास होता हैं तो ऐसा सबके साथ होता हैं।

..आज मेरी हालतों पे हँसता हैं ये ज़माना सारा..
..बनाया था जो काबिल उन्हें लूटा के कमाया अपना सारा..!

..नितेश वर्मा..

..वो गुजरता चला गया..

..वो गुजरता चला गया..
..वक्त था जो मेरा मुझसे बिछुडता चला गया..

..मैं तन्हाइयों में जीता रहा..
..खुशियों की तालाश में मैं खुद को खोता चला गया..

..हार गया मैं बाजियाँ लूटा के अपनें सिक्कें सारें..
..सवारं सकूँ जो मैं जिन्दगी खोता चला गया..

..कमाएँ मेरें सारें दीनार खोटे निकल गए..
..किस्मत पे मैं जिन्दगी लूटाता चला गया..

..अब कोई खामोश चेहरा नजर आता नहीं..
..बदल सकूँ जो शक्स ठहरा था मेरा कब का चला गया..

..मैं ठहर गया उस खुदा के भरोसें..
..और था जो मेरा वक्त कब का चला गया..

..वो मौत का फ़रिश्ता हैं इस खौफ़ में रहता हूँ हर वक्त मैं..
..बिगाड के ज़िन्दगी कब का वो चला गया..

..हर मंज़र पे लिक्खा हैं मेरे होनें का आसार..
..मौत था जिस शाख कब का टूट चला गया..

..मैं सोऊँ और तेरी आँचल उड जाएं..
..बिगडा वो तूफ़ां कब का चला गया..

..सिमटा हुआ हैं हर हिस्सा उसके रूह तक का..
..छींन सकूँ उससे उसकी जान कब का चला गया..

..वो लिखता हैं अपनें हर हर्फ़ में अपनें दर्द की बात..
..रात ख्वाब का उसका कब का चला गया..

..अब तुम हँस ही लोगे तो क्या होगा उसका..
..शर्म आँखों से उसके कब का चला गया..

..वो कोई सियासत नहीं करता अब..
..जो थीं बची रियायत उसका कब का चला गया..

..अब खामोश ही रहो सब तो अच्छा हैं..
..मय्यत पे थीं जो शोर कब का चला गया..

..अगलें बरस फिर से सुनाऐंगें किस्सें मखमली..
..दिल था जो शीश कब का टूट चला गया..

..वो गुजरता चला गया..
..वक्त था जो मेरा मुझसे बिछुडता चला गया..!

Friday, 6 June 2014

..खैलन संग मोर पिया अब मोर भी नाचन आएं हैं..

..भोर भए आरूण अब अंगना आएं हैं..
..खैलन संग मोर पिया अब मोर भी नाचन आएं हैं..

..ठंडी-ठंडी बहती हवाएं पास ये बुलावत हैं..
..हम का करें जब रिमझिम बारिश प्यार लुटावत आएं हैं..

..सोलह-सिंगार करें पिया हाथ में कंघना खनकावत आएं हैं..
..मोर भगावत दौडें पडे हैं नजरों पे उनकें हम ना आएं हैं..

..देख हमका वो लजावत हैं सर पे पैर रख नजरों से ओझल हो जावत हैं..
..जा ओट सहारें राम-राम सीनें धक-धक साथ ये पुकारत हैं..

..अब का करें सोच शर्म से लाल-लाल चेहरा हो जावत हैं..
..हमका अपना पिया समझों गलें लगा के हम ये समझावत हैं..

..आँख बंद हैं पडी रही उनकी किसकों हम ये समझावत हैं..
..उफ़ हो गई देर अब का कारण हैं पिया के जुल्फ़ों में उलझत जात जान हमारन हैं..!

..नितेश वर्मा..

..मैनें चेहरों में हिन्दुस्तान को देखा हैं..

..चढते-उतरतें हर मकाम को देखा हैं..
..मैनें चेहरों में हिन्दुस्तान को देखा हैं..

..सब सँभाल के करते हैं अपनी जुबां खाली..
..रात के चोरों को मैंनें सुबह नमाज़ पढतें देखा हैं..!


chlo phr se use bula laye nikalo samete sikke phr se use khrid laye jis daaman me samete hai uske aansu chalo bharpaya kar phr se uski khusi khreed laye ye dil hota hi hai kuch aisa chalo hath badhaye aur apna use kar laye

..हर बात को वो मेरे काट देता हैं..
..जैसे पाला हुआ बकरा कोई सरेआम काट देता हैं..

..ज़ुर्म करतें उसे देखा नहीं मैंनें कभी..
..मगर मुहब्बत में वो लात लगा देता हैं..

..हर शख्स से मिलों और पूछों मेरा किरदार..
..वर्मा हैं नाम क्या कभी समझ के तो देखों..

..चंद लम्हात लगते हैं उसे फ़ैसला सुनानें को..
..देर तक तो बस मज़ाक बनता हैं..

..हम हार जातें हैं नियति के आगे..
..सजदें का यहां अब कोई ज़िक्र नहीं होता..
..खामोश बैठे रहतें हैं फ़रिश्तें भी..
..क्या सजदें का सिला यही हैं होता..!

Thursday, 5 June 2014

असफ़लता और बहानें

मनुष्य असफल होनें पे उसका भागी खुद को समझें और उस गलती को सुधारनें की दिशा में अगली प्रयास करें तो वो मनुष्य अपनी किसी अगली प्रयास में सफ़लता को जरूर प्राप्त कर लेता हैं, परंतु जो मनुष्य अपनें असफ़लता को स्वीकार नहीं करतें और मनचाहें हथकंडे अपनातें हैं जैसे पेपर बहोत हार्ड आया था या फ़िर किस्मत ने साथ नहीं दिया मैंनें तो सब करा था इत्यादि। ये सब पैंतरें अपना कर वो खुद को या फ़िर अपनें परिवार-समाज़ को अपनें गलतियों का ज़िम्मेदारित्व इन्हें देते हुएं निकल जातें हैं। तो मैं उन्हें बता दूं कि परीक्षा का जो स्तर होता हैं वो उसी स्तर का होता हैं जिससे नियुक्तियाँ पूरी हो जाएं वो आपकी स्तर का कोई ख्याल नहीं रखती और जहाँ तक बात हैं आपकी किस्मत की तो मैं भी कोई नास्तिक नहीं किस्मत एक बार साथ नहीं दे सकती दो बार नहीं दे सकती लेकिन ये बार-बार हो तो ये किस्मत नहीं आपकी अपनी कोई कमी हैं जिसे आप पूरा नहीं कर पा रहें और भगवान या किस्मत को अपनी गलतियों का जिम्मेवार बतला रहें हैं। हो सकता हैं आपके अपनें इस बात को मान भी ले और आपका साथ दे। आपके लिए पूजा-पाठ कराएं, तीर्थ करानें ले जाएं इत्यादि अनेक। मैं ये नहीं कहता ये नहीं करनें चाहिएं पर इस मकसद के साथ नहीं करने चाहिए। यर्जुवेद कहता हैं साकाम प्राथना भगवान को भी बाधित करता हैं इससे सृष्टि की संरचना पे भी असर होता हैं, एक समस्या के सामाधान के लिए पूरी काया पलटनी पडती हैं। मनुष्य को अपनें गलतियों का माननें और उन्हें समझ-विचार करनें की सोच होनी चाहिए। यदि आप एक प्रयास से नहीं निकल पातें तो इसका मतलब ये नहीं की आप लायक नहीं हैं। आप बेशक उसे हासिल कर सकतें हैं परंतु सही दिशा एक निरंतर लगन की जरूरत हैं। आपको जरूरत हैं आप इस सामाजिक बनावट से निकलें और अपनें लक्ष्य की और बढें। यदि आप असफल होतें हैं तो आपकी बात बस अपनें या चलों मैं भी मान लूँगां, लेकिन जिसे आपको कभी नियुक्त करना हैं वो ऐसी बहसों पे तनिक भी विचार नहीं करते। यदि आप उनकें सामनें इसका उल्लेख भी करतें हैं तो यकीं मानिएं वो तो आपको मूर्ख या फ़िर भावूक समझ बैठेंगें। आपकी एक पहचान हैं जिसे आप स्वयं बनाए रख सकतें हैं। कोई क्या कहता हैं उसे नाकार कर आप अपनें दिल की सुनें हो सकता हो वो गलत हो लेकिन वो भी आपकों एक परिणाम दे के जाऐंगा ना कि कोई अवहेलना। और आप यकीं मानिएं यदि आप सफ़ल हैं तो सब आपको पूछेंगें पूँजेंगें और जो कहेंगें उसे मानेंगें भी यानी एक तरह से आप एक राजा होंगें।

..कहानियाँ तो सबकी कुछ Amazing ही होती हैं..
..लेकिन सुनती ये दुनियाँ सिर्फ़ उनकी ही हैं..
..जो कामयाब होतें हैं..!

..नितेश वर्मा..


Wednesday, 4 June 2014

..वर्ना चाहा तो मैंनें भी उसे ख़ुदा की तरह था..

..बस फासलों का ही हुआ करता था गुनाह..
..वर्ना चाहा तो मैंनें भी उसे ख़ुदा की तरह था..!

..नितेश वर्मा..

..क्या होता हैं जब अपनें साथ छोड जातें हैं..!

..इस दौर से गुजरों कभी तो बताना तुम..
..क्या होता हैं जब अपनें साथ छोड जातें हैं..!

..नितेश वर्मा..

..फ़रिश्तों के शहर से हो आया हूँ..

..फ़रिश्तों के शहर से हो आया हूँ..
..ज़ुर्म हैं वहां भी..
..ये देख आया हूँ..

..अब भरोसें की बात तुम ना करना मुझसे..
..कैसे बनातें हैं फ़रिश्तें बेवकूफ़..
..ये देख आया हूँ..!

..नितेश वर्मा..

..अभी ज़िंदा हूँ मैं..

..मेरी खामोशियों को मेरी मौत ना समझ लेना..
..अभी ज़िंदा हूँ मैं..

..किसी शहर से लौटा हूँ किसी अपनें को देख..
..हैंरत अब तुम्हारें मेरे ना होनें पे क्या होगी..!

..नितेश वर्मा..

..जीत गया मैं उसकी उल्झनों में..

..वो मुहब्बत बताती रही..
..मैं हिसाबें गिनाता रहा..

..जीत गया मैं उसकी उल्झनों में..
..खामोश चेहरा उसका ये बताता रहा..!

..नितेश वर्मा..

माँ

मुझे पता हैं की आप सब अपनी ज़िन्दगी में बहोत वयस्त होगें। लेकिन ये कहानी आप सब के लिए ,पढियेगा जरुरु सिर्फ 2 मिनट लगेंगे !

हैलो माँ ... में रवि बोल रहा हूँ....,कैसी हो माँ....?

मैं.... मैं…ठीक हूँ बेटे.....,ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो?

हम दोनों ठीक है

माँ...आपकी बहुत याद आती है…, ..अच्छा सुनो माँ,में अगले महीने इंडिया आ रहा हूँ.....तुम्हें लेने।

क्या...? हाँ माँ....,अब हम सब साथ ही रहेंगे....,

नीतू कह रही थी माज़ी को अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी।

हैलो ....सुनरही हो माँ...?“हाँ...हाँ बेटे...“,बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली,बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा।

जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।

पूरे दो साल बाद बेटा घर आ रहा था।

बूढ़ी सावित्री ने मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी।

सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर जाएगा।

रवि अकेला आया था,उसने कहा की माँ हमे जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकान की बात करता हूँ।

“मकान...?”, माँ ने पूछा। हाँ माँ,अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन इसकी देखभाल करेगा।

हम सबतो अब अमेरिका मे ही रहेंगे।बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।

आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने मकान बेच दिया।

सावित्री देवी ने वो जरूरी सामान समेटा जिस से उनको बहुत ज्यादा लगाव था।

रवि टैक्सी मँगवा चुका था। एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर जाकर सामान की जांच और बोर्डिंग और विजा का काम निपटा लेता हूँ।

““ठीक है बेटे।“,सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ गई।

काफी समय बीत चुका था। बाहर बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजे की तरफ देख रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर नहीं आया।‘

शायद अंदर बहुत भीड़ होगी...’,सोचकर बूढ़ी आंखे फिर से टकट की लगाए देखने लगती।

अंधेरा हो चुका था। एयरपोर्ट के बाहरगहमागहमी कम हो चुकी थी।

“माजी...,किस से मिलना है?”,एक कर्मचारी नेवृद्धा से
पूछा ।

“मेरा बेटा अंदर गया था.....टिकिट लेने,वो मुझे अमेरिका लेकर जा रहा है ....”,सावित्री देबी ने घबराकर कहा।

“लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहीं है,अमेरिका जाने वाली फ्लाइट तो दोपहर मे ही चली गई। क्या नाम था आपके बेटे
का?” ,कर्मचारी ने सवाल किया।

“र....रवि. ...”, सावित्री के चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आई।

कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर बोला,“माजी....

आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने वाली फ्लाइट से कब का जा चुका...।”“क्या. ? ”

वृद्धा कि आखो से आँसुओं का सैलाब फुट पड़ा।

बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा। किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।

रात में घर के बाहर चबूतरे पर ही सो गई।सुबह हुई तो दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे दिया।

पति की पेंशन से घर का किराया और खाने का काम चलने
लगा।

समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने वृद्धा से पूछा।

“माजी... क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाए,अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई,अकेली कब तक रह पाएँगी।“

“हाँ,चली तो जाऊँ,लेकिन कल को मेरा बेटा आया तो..?,
यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा?“......

आखँ से आसू आने लग गए दोस्तों ....!!!

माँ बाप का दिल कभी मत दुखाना दोस्तों मेरी आपसे ये हाथ जोड़कर विनती है !


मुहब्बत और विश्वास

मुहब्बत और विश्वास एक ही चरण के दो हिस्सें हैं यदि इनमें से कोई भी चरण थोडा भी गलत हुआ तो आपके हिस्सें कुछ नहीं लगता। मनुष्य तालमेल बनानें में बहोत अच्छें होते हैं और वो दूसरों से शीघ्र पारस्परिक प्रेम संबंध बना लेते हैं। इसी बीच वो कुछ ऐसे संबंधों से जुड जातें हैं जिसका विरोध उनके अपनें करनें लगतें हैं चाहें वो रिश्ता कितना भी पवित्र या जायज हो। ऐसे में वो मनुष्य ना तो अपनें अपनों को समेट पाता हैं ना उस रिश्तें को और ज़िन्दगी उलझ के रह जाती हैं। मनुष्य को इस वक्त धैर्य से काम लेके दोनों पक्षों को अपनी मतें समझानी चाहिए। वे आपके अपने होते हैं आखिर प्यार से समझानें पे तो दुश्मन भी मान जातें है। प्रयास करके देखने में ही हमारी भलाई होती हैं यूं चुनौतियों से मुकरनें का कार्य तो कमजोर इंसान करतें हैं और हम कमजोर नहीं। प्यार करें वक्त दे एक निश्चित समय पे सब आपके हक में होता हुआ दिखाई देगा।


..वो कूसूर हैं मेरा जो मैंनें उसे सताया हैं..
..हैं वो मेरा तो आखिर क्यूं मैंनें उसे रुलाया हैं..


..मानता हूँ मैं बात तुम्हारी भी..
..ज़िद थी ही उसकी कुछ ऐसी..
..जो मैंनें उसे ठुकराया हैं..!


..नितेश वर्मा..


Sunday, 1 June 2014

palke bheng baithi hai apno se ye kuch ruth baithi hai koi jariya hai jo milta nahi aamkho me samundar hai kisi aur ko ye dikta nahi apne hai jo parayo ke hisse me baithe hai dil hai jo kahi bandhta nahi karwate lete hai mujhme hi kahi kahi baatein mere mere hai apne main bhi ye samjhata nahi vajah chahe jo ho khuda ki manzoori chahe jo ho mere hisse me ho tum to mere bante kyu nahi dil hai to sambhalte kyu nahi mukammal hai khud me baatein meri bhari manjar se gujari hai jo baatein meri ahesaas ke sataye hai ye lafz mere kinare se hi sahi jannat dikhaye hai mujhe main marta kya naa karta apno se haar un begaone se kyu na hota badal jate shayd har vasool mere zindagi se hoti muhabbat to sambhal jate shayad kadam mere  main hota khud ka hote kisse mere khud ke dil samundar to aankhe dariya hota main apne irado sa hota dil hota magar faisle mere hote main sikandar hota meri baatein mera husla zindagi badal ke rah jati saare gam kinare ho jate palke ab bhengi bhi naa hoti khamosh hoti magar muskurati hoti

..बताया तो होता मुझे कभी..

..सारें राज़ों पे जो पर्दा लगाएं बैठें हो..
..दिल में ही दिल किसी को जगाएं बैठें हो..

..बताया तो होता मुझे कभी..
..क्यूं इस कदर मुझे परेशां बनाएं बैठें हो..!

..नितेश वर्मा..

..इस परेशां को तुमनें सुना ना कभी..

..गुजर गए मौसम सभी..
..तुमनें बदलना ना चाहा कभी..

..धूंधती रही हर वक्त अपनी तुम..
..इस परेशां को तुमनें सुना ना कभी..

..रोया था बहोत मुकर जानें पे तेरे..
..किस कदर हुआ था हाल..
..तुमनें देखा ना कभी..

..मैं ही था जो एक पाप का भागी..
..तुमनें मरनें पे भी मुझे देखा ना कभी..!

..नितेश वर्मा..