Friday, 27 June 2014

..राम जैसे हो बेटे..

..यहाँ ज़िस्मों से लगे फ़िरते हैं सब..
..मुहब्बत हो रूह से..
..वो मुहब्ब्बत अब कहीं नहीं..

..कतरा-कतरा समेटें फ़िरते हैं सब..
..वसीहत हो खानदानी..
..वो दौलत अब कहीं नहीं..

..सात समुन्दर पार कर सके परिन्दें..
..हौसलें भरें हो पर..
..वो अब कहीं नहीं..

..भूखें पेट मरतें हैं गरीब यहाँ..
..बरकत की दुआ ले सके..
..कोई शक्स अब कहीं नहीं..

..पानी-पानी को मारें फ़िरते हैं यहाँ सब..
..राम जैसे हो बेटे..
..वो वक्त अब कहीं नहीं..

..नितेश वर्मा..

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