Friday, 27 June 2014

..आशिक..

आशिकों का क्या होता हैं। पहलें प्यार करनें या पानें को तरसतें और जब वो मिल जाता हैं तो उससे छुटकारा पानें को तरसतें हैं। ऐसे आशिक ; आशिक नहीं। दिल से उनका कोई नाता नहीं होता, जमीर उनका सोया हुआ होता हैं। वो अधीर और अज़िम्मेदार होतें हैं। क्या कहूं, युग कलयुग हैं इसे देख के बस इतना ही कह सकता हूँ आप भी सोच-समझ के ही प्यार करो। आज़-कल प्यार,इश्क,मोहब्बत के नाम पे ना जानें क्या कुछ हो रहा हैं।समय ही वैसा हैं अब दिल भी सोच-समझ के ही लगाना पडेगा।

..हर बात पे ये दिल रोता हैं..
..खोया हैं मैंनें ना जानें ऐसा क्या..
..जो हर रात को ये रोता हैं..

..सँभालूं कितना भी इसे मैं..
..बेसबब अँधेरों में रोता हैं ये..

..इस उफ़न भरी गर्मी में..
..दरियां के दरियां सूख गएं..
..पता ना ये इतनी आँसू बहाता हैं कैसे..

..मैंनें हर जुगाड करके देख लिया..
..टूटा हैं दिल लडकी से..
..तो लडकी पटा कर देख लिया..
..मिलती नहीं कमबख्त इस दिल को सुकूं..
..हर जगह फ़िर से दिल लगाकर देख लिया..

..मुहब्बत में कैसी होती हैं इम्ताहन दोस्तों..
..ये मत पूछों..
..होता हैं सवाल आँखों से..
..जुबां कुछ कह नहीं पाती..

..बहोत नाज़ुक होता हैं ये आशिकी का रिश्ता..
..हर बात पे जां निकल आती हैं..
..होगा तुम्हें गर किसे से प्यार..
..तो तुम भी समझ जाओगे..
..उल्फ़त में जीना कैसा होता हैं..

..हर बात पे ये दिल रोता हैं..
..खोया हैं मैंनें ना जानें ऐसा क्या..
..जो हर रात को ये रोता हैं..!

..नितेश वर्मा..

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