Friday, 20 June 2014

..वो गुजरता चला गया..

..वो गुजरता चला गया..
..वक्त था जो मेरा मुझसे बिछुडता चला गया..

..मैं तन्हाइयों में जीता रहा..
..खुशियों की तालाश में मैं खुद को खोता चला गया..

..हार गया मैं बाजियाँ लूटा के अपनें सिक्कें सारें..
..सवारं सकूँ जो मैं जिन्दगी खोता चला गया..

..कमाएँ मेरें सारें दीनार खोटे निकल गए..
..किस्मत पे मैं जिन्दगी लूटाता चला गया..

..अब कोई खामोश चेहरा नजर आता नहीं..
..बदल सकूँ जो शक्स ठहरा था मेरा कब का चला गया..

..मैं ठहर गया उस खुदा के भरोसें..
..और था जो मेरा वक्त कब का चला गया..

..वो मौत का फ़रिश्ता हैं इस खौफ़ में रहता हूँ हर वक्त मैं..
..बिगाड के ज़िन्दगी कब का वो चला गया..

..हर मंज़र पे लिक्खा हैं मेरे होनें का आसार..
..मौत था जिस शाख कब का टूट चला गया..

..मैं सोऊँ और तेरी आँचल उड जाएं..
..बिगडा वो तूफ़ां कब का चला गया..

..सिमटा हुआ हैं हर हिस्सा उसके रूह तक का..
..छींन सकूँ उससे उसकी जान कब का चला गया..

..वो लिखता हैं अपनें हर हर्फ़ में अपनें दर्द की बात..
..रात ख्वाब का उसका कब का चला गया..

..अब तुम हँस ही लोगे तो क्या होगा उसका..
..शर्म आँखों से उसके कब का चला गया..

..वो कोई सियासत नहीं करता अब..
..जो थीं बची रियायत उसका कब का चला गया..

..अब खामोश ही रहो सब तो अच्छा हैं..
..मय्यत पे थीं जो शोर कब का चला गया..

..अगलें बरस फिर से सुनाऐंगें किस्सें मखमली..
..दिल था जो शीश कब का टूट चला गया..

..वो गुजरता चला गया..
..वक्त था जो मेरा मुझसे बिछुडता चला गया..!

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