Friday, 20 June 2014

बेचैनियां ये थमेगी कब

आज कुछ लिखना चाहता नहीं। आज बहोत उदास हूँ। कारण, वो मेरें अपनें हैं नाम बताना नहीं चाहता। रोना चाहता हूँ पर नजर में आ जाऊगाँ, आगे किसे क्या समझाऊगाँ? किसे उन आसूओं का ज़िम्मेदार बताऊगाँ? दिल हैं टूटा बेवजह कैसे किसे क्या बताऊगाँ? बात कोई नयी नहीं हैं पर आज हालत सँभाल की नहीं हैं। चाहता हूँ सब बोलूं पर खामोशी सँभालें हैं सब कैसे तोडू समझ नहीं आता। शायद आज की रात बहोत अज़ीब होगी ना जानें क्या होगा? दिल परेशान हैं। आज वक्त भारी हो चला हैं। अंधेरी रात अपनें साथ भयानक तूफ़ां ले आयी हैं। सब बिगडा पडा हैं दिल भी और जान भी। कौन इसे सँभालेगा कुछ पता नहीं। बेचैनियां ये थमेगी कब कहना बहोत मुश्किल हैं। सब आज मेरें खिलाफ हैं मैं आज़ बेबस, बेसहारा, थमा पडा हूँ ना जानें कौन इसे सही करेगा। आँखें नम हैं अब कुछ लिखा जाता नहीं.. दिल उदास होता हैं तो ऐसा सबके साथ होता हैं।

..आज मेरी हालतों पे हँसता हैं ये ज़माना सारा..
..बनाया था जो काबिल उन्हें लूटा के कमाया अपना सारा..!

..नितेश वर्मा..

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