Wednesday, 25 June 2014

..ये लफ़्ज़ नहीं जो मँहगें किताब में रहें..

..हैं वो नाराज़ तो नाराज़ रहें..
..ये महोब्बत नहीं जो सालों-साल रहें..

..बिकता हैं तो बिक जाएं वो भी किसी बाज़ार में..
..ये लफ़्ज़ नहीं जो मँहगें किताब में रहें..!

..नितेश वर्मा..

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