Tuesday, 24 June 2014

..भूल गए हैं सब रस्ते दरहो-हरम के..

..भूल गए हैं सब रस्ते दरहो-हरम के..
..गीता-कुरान के इंसा नज़र नही आते..

..माँ बेटे को पुकारती हैं..
..खुद से हैं परेशां फ़र्ज़ निभानें नहीं आते..

..माँग में उसके नाम का सिन्दूर सजाएँ बैठी हैं..
..कैसी हैं तंग हालत शौहर उसके मिलनें नही आते..

..सज़ रहें हैं घर के घर मौत पे मैं बैठा हूँ..
..होंठों पे हैं हे राम पर बोलने नहीं आते..

..लड रहें हैं ज़िन्दगी-मौत से सब के सब..
..उल्फ़त में हैं जान पर खज़ानें खोलने नहीं आते..

..सोया हैं चैंन की नींद मेरे हिस्सों का हक मार..
..कितना बेबस हूँ चाहता हूँ पर होश खोलनें नहीं आते..!


..नितेश वर्मा..

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