मुहब्बत और विश्वास एक ही चरण के दो हिस्सें हैं यदि इनमें से कोई भी चरण थोडा भी गलत हुआ तो आपके हिस्सें कुछ नहीं लगता। मनुष्य तालमेल बनानें में बहोत अच्छें होते हैं और वो दूसरों से शीघ्र पारस्परिक प्रेम संबंध बना लेते हैं। इसी बीच वो कुछ ऐसे संबंधों से जुड जातें हैं जिसका विरोध उनके अपनें करनें लगतें हैं चाहें वो रिश्ता कितना भी पवित्र या जायज हो। ऐसे में वो मनुष्य ना तो अपनें अपनों को समेट पाता हैं ना उस रिश्तें को और ज़िन्दगी उलझ के रह जाती हैं। मनुष्य को इस वक्त धैर्य से काम लेके दोनों पक्षों को अपनी मतें समझानी चाहिए। वे आपके अपने होते हैं आखिर प्यार से समझानें पे तो दुश्मन भी मान जातें है। प्रयास करके देखने में ही हमारी भलाई होती हैं यूं चुनौतियों से मुकरनें का कार्य तो कमजोर इंसान करतें हैं और हम कमजोर नहीं। प्यार करें वक्त दे एक निश्चित समय पे सब आपके हक में होता हुआ दिखाई देगा।
..वो कूसूर हैं मेरा जो मैंनें उसे सताया हैं..
..हैं वो मेरा तो आखिर क्यूं मैंनें उसे रुलाया हैं..
..मानता हूँ मैं बात तुम्हारी भी..
..ज़िद थी ही उसकी कुछ ऐसी..
..जो मैंनें उसे ठुकराया हैं..!
..नितेश वर्मा..
..वो कूसूर हैं मेरा जो मैंनें उसे सताया हैं..
..हैं वो मेरा तो आखिर क्यूं मैंनें उसे रुलाया हैं..
..मानता हूँ मैं बात तुम्हारी भी..
..ज़िद थी ही उसकी कुछ ऐसी..
..जो मैंनें उसे ठुकराया हैं..!
..नितेश वर्मा..
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