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इस देश में दो भारत बसतें हैं। अमीरों का भारत देश, गरीबों का भारत देश। अमीर और अमीर होतें जा रहें हैं वही गरीब और गरीबी में धँसतें जा रहें है। कारण आप कुछ भी कह लिजीए प्रशासन,समय,अनैतिकता या किस्मत। गरीब आखिर क्यूं गरीब हो रहें हैं? वज़ह क्या हैं? क्या वे प्रजातंत्र से दूर हैं? सरकार की दी सुविधाएँ [शिक्षा/राशन] उन तक पहूँच पानें में असमर्थ हैं? या फ़िर इन्हें उनकें पास तक आनें ही नहीं दिया जा रहा। कोट-कचहरी किसी और की देख-रेख में चल रही हैं या चलानें वाला हाथ ही सही नहीं। वजह जो भी हो लेकिन समझ इस बात की हैं आखिर यें क्यूं हैं? इस प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाहतें हैं। आइयें हम इसे एक कहानी के जरिएं हम इसके एक कारण को विवेचित करतें हैं। शायद ये तुकबंद ना हो परंतु सहसा रोमांचक जरूर होगा।
राम शहर की दूसरी ओर की बस्ती में रहता हैं। वो गरीबों की बस्ती का एकमात्र ऐसा लडका हैं जो सरकारी विधालय जा सकनें में सक्षम हैं और अन्य सबो के साथ कुछ ना कुछ परेशानियां जुडी हुई हैं। राम के परिवार में उसके माता-पिता और दो छोटी बहनें हैं। राम के पिता बगल के एक फेक्ट्री में मज़दूर का काम करतें हैं। वो अपनी ज़िन्दगी से परेशान अपनें गरीबी को भूला के सोनें के लिए कभी-कभी नशा भी करतें हैं। और इधर राम ये सोचता हैं जब वो पढ के बडा आदमी बन जाऐगा तो सारी गरीबी मिट जाऐंगी वो अपनें कस्बें के लोगों को शहर में एक पहचान दिलवाऐगा। वक्त बीतता गया राम की पढाई पूरी होती गई और दूसरी तरफ़ राम के पिता की परेशानियाँ बढती गई [बेटी की शादी,बेटे की आगे की शिक्षा]। अब राम के पिता रोज के अपनें कमाई का आधा प्रतिशत तक दारू में बर्बाद करतें हैं। स्वास्थय अब उनका साथ नहीं दे रहा, और एक समय पर आ के उनकी मृत्यु हो जाती हैं। काफी दुखद अनुभव पर दस्तूर को शायद यहीं मंज़ूर था।
अब घर की हालत बिगडती जा रहीं। गरीब घर की स्त्री होनें के कारण राम की माँ पढी-लिखी नहीं थीं और इधर राम नहीं चाहता था की उसकी माँ उसके होते हुएं किसी असुरक्षित जगह कार्यरत हो। वो घर की हालत को देखते हुएं अपनें शिक्षा को अधूरा छोडतें हुएं फिर से अपनें पिता के जगह ही कार्यरत हो जाता हैं। आखिर उस नौवें पास लडके को कोई और काम भी क्या मिल सकता हैं। धीरें-धीरें वो अपनें घर की बागडोर अपनें पे सँभाल लेता है, परंतु दिल में उसकी ये कसक बनी रहती हैं की वो कुछ कर ना सका। इस गम में वो इतना डूबा रहता है की वो भी इसे भूलानें के लिए मदिरा का सहारा लेता रहता हैं। यधपि वो नौवीं स्तर तक पढा हैं, परंतु जब परिवेश ही सहीं ना हो तो क्या हो सकता हैं।
अपनें बहनों की जैसे-तैसे शादी करनें के बाद घर के देख-रेख के लिए सगे-संबंधी और परिवार वालें मिल के उसकी शादी वहीं के किसी लडकी से करा देते हैं। वो ना चाहतें हुएं भी मजबूर हैं, आखिर उसके पास कोई दूसरा उपाय भी नहीं हैं। वो आगे पढना चाहता हैं पर जिम्मेदारियों के बोझ-तले दबा पडा हैं। जब वो पढेगा तो कमा के लाऐगा कौन? स्थिति इतनी गंभीर हैं की किसी की भी सोच का कोई हल नहीं निकलता। शादी हो जानें के बाद और परेशानियाँ। घर पैसों से ही चलता हैं, अगर पेट में दाना ना हो तो राम का नाम भी नहीं लिया जाता।
कुछ दिनों बाद राम का एक बेटा होता हैं वो अपनें और शहर के बीच के भेद-भाव को देखता हैं तो सोचता हैं ऐसा क्यूं हैं? धीरें-धीरें वो सभी बातों को समझनें लगता हैं और फ़िर उसकी सोच राम के पास ही जा के ठहर जाती हैं के वो भी इस भेद-भाव की स्थिति को बदलेगा और शहर के दूसरें तरफ़ भी अपना एक मकान बनवाऐगां। परंतु उसकी सोच, सोच बनके ही रह जाती हैं। राम अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछा छुडा के यहां से चला जाता हैं और उसका बेटा उसी की तरह आगे ज़िन्दगी जीनें को मज़बूर हैं। चाह के भी कुछ कर नहीं सकता।
आखिर इन सब का ज़िम्मेदार कौन हैं? क्या अगर जो सरकार वोट माँगनें उनके पास जाती हैं वो उनके स्थिति से अनभिग्न हैं? क्या वो कुछ नहीं कर सकते? हमारें समाज़ में इतनें बहुचर्चित सदस्य हैं क्या वो चाहें तो कुछ बदलाव नहीं कर सकतें क्या? लेकिन पता ना समस्यां क्या हैं? बनती बातें ना जानें कहां आके रूक जाती हैं। कुछ समझ नहीं आता। मैं कोई बदलाव तो एका-एक कर नहीं सकता परंतु प्रयास इस दिशा में जारी हैं। कृप्या आप भी इनकें संदर्भ में सोचें एवं कोई मदद करें।
टिप्पणी: हमें अमीरों की अमीरी से कोई परेशानी नहीं हैं। यह लेख बस गरीबों की सोचनीय स्थिति का वर्णन करती हैं। आपकी अमीरी देश के हितकर में हैं। परंतु यह लेख देश की अर्थव्यवस्था को दर्शानें का प्रयास नहीं करती हैं।
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