प्रेम की कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं होती। ये इंसान के जुबानों से बांधा नहीं जा सकता। मगर कहतें हैं प्यार जितना बाँटो बढता हैं मगर जब ये इंसानों में बंटता हैं तो समझ पाना मुश्किल होता हैं। क्या कोई कभी ये चाहेगा की उनके और उनकें महबूब के बीच कोई तीसरा भी आए। बहोत मुश्किल होता हैं इसे सँभालना क्यूंकि तीसरा व्यक्ति जिसे अपना बनाना चाहता हैं वो अपनें शातिरता का कोई प्रमाण उनके सामनें नहीं रखता। वो अपनें चालों से बस उस दूसरें को वहाँ से हटाना चाहता हैं और पहले के नज़र में अच्छा बना रहता हैं। यहीं कारण हैं की इसे सब समझ नहीं पाते जो इस दौर से गुजरता हैं वो अपनी मुश्किलात सबको तो दूर अपने हम-दर्द को भी नहीं बता पाता क्यूंकि उसकी नज़र में तो वो दूध का धूला हैं। स्थिति इतनी गंभीर होती चली जाती हैं की वो तीसरा व्यक्ति उन दोनों के बीच एक नयी जगह बनानें में कामयाब हो जाता हैं। धीरें-धीरें स्थिति बिगडती हैं दूसरें को ये बर्दास्त नहीं होता के उनके बीच कोई और आएं। वो चाह-कर भी अपनें प्यार को छोड नहीं पाता। तीसरा व्यक्ति तो जान के उस आग में कूदता हैं तो उसके जानें का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। पहला इंसान दोनों की स्थिति से अनभिग्न वो अपनी वहीं स्थिति बनाएं रखता हैं जैसे शादी के बराती और मय्यत के हूजूम दोनों स्थिति में उन्हें पेट भरना होता हैं जिसमें वो कामयाब होतें हैं। कहनें का मतलब ये हैं की पहला व्यक्ति सभी गमों से दूर होता हैं और दोनों के प्यार के करीब। बस परेशानी उसे ये होती हैं किसे अपनें साथ रखें और किसे इंकार करें। आज की सबसे बडी समस्यां यहीं हैं जिसे आम भाषा में "लव-ट्रेंगल" कहतें हैं।
..गज़ल..
..कितना कमज़र्फ़ हैं के वो कहता हैं..
..भूल जाओ उसे जिसमें वो रहता हैं..
..वो हैं उसके आँखों में बसी..
..मैं फोड लूं आँखों वो कहता हैं..
..जुल्फ़ों के नीचे आशियाँ हैं उसकें..
..भरी धूप हर्श होगा क्या मेरा वो कहता हैं..
..वो जन्नत बना यहां से चलेगा मीलों दूर..
..मैं हूँ फकीर माँगूगां भीख वो कहता हैं..
..हाथों में हाथ लिए भरें बाज़ार चलता हैं..
..मैं हूँ अज़नबी दिख जाऊँ तो वो कहता हैं..
..अब सजदें का भी मेरा कोई असर नहीं..
..इबादत जो करू तो आसार वो कहता हैं..
..आँखें धूमिल पडी तो परेशां हो चला पानी को..
..कीचड नहीं मौत हूँ मौत मेरा वो कहता हैं..!
..नितेश वर्मा..
..गज़ल..
..कितना कमज़र्फ़ हैं के वो कहता हैं..
..भूल जाओ उसे जिसमें वो रहता हैं..
..वो हैं उसके आँखों में बसी..
..मैं फोड लूं आँखों वो कहता हैं..
..जुल्फ़ों के नीचे आशियाँ हैं उसकें..
..भरी धूप हर्श होगा क्या मेरा वो कहता हैं..
..वो जन्नत बना यहां से चलेगा मीलों दूर..
..मैं हूँ फकीर माँगूगां भीख वो कहता हैं..
..हाथों में हाथ लिए भरें बाज़ार चलता हैं..
..मैं हूँ अज़नबी दिख जाऊँ तो वो कहता हैं..
..अब सजदें का भी मेरा कोई असर नहीं..
..इबादत जो करू तो आसार वो कहता हैं..
..आँखें धूमिल पडी तो परेशां हो चला पानी को..
..कीचड नहीं मौत हूँ मौत मेरा वो कहता हैं..!
..नितेश वर्मा..
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