..तुम्हारी बातें..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..
..ना जानें तुम क्या समझाती थीं..
..कहना चाहती थीं कुछ..
..खुद से परेशां कह जाती थीं कुछ..
..मैं समझता था सारी बातें तुम्हारी..
..नज़र झुका के..
..एक साँस में जो तुम कहती थीं परेशानी सारी..
..हौले-हौले हवा का झोंका जो आता था..
..ज़ुल्फ़ों का तुम्हारी काली घटा बना जाता था..
..तुम्हारी अदाओं में कुछ ऐसा था..
..जैसें किसी पुरानें घाव पे कोई मरहम था..
..सबसे निराली थीं मुस्कान तुम्हारी..
..चेहरें पे छाई रहती थीं..
..हर-वक्त एक अरमान पुरानी..
..मैं तुम्हें देख बदहाली से कभी गुजरा ही नहीं..
..तुम वो मूरत थीं..
..जिसमें कई दुआओं की मिन्नत बसी थीं..
..हल्की सी खरोंच से घबरा जाती थीं..
..तुम थीं मेरें मुहब्बत के करीब इतनी..
..हर रात बसर मुझमें कर जाती थीं..
..मैं माँगता था तुमसे अपनें हक का प्यार..
..लब से लब लगा के..
..खामोश तुम कर जाती थीं..
..तुम्हारी बातें..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..!
..नितेश वर्मा..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..
..ना जानें तुम क्या समझाती थीं..
..कहना चाहती थीं कुछ..
..खुद से परेशां कह जाती थीं कुछ..
..मैं समझता था सारी बातें तुम्हारी..
..नज़र झुका के..
..एक साँस में जो तुम कहती थीं परेशानी सारी..
..हौले-हौले हवा का झोंका जो आता था..
..ज़ुल्फ़ों का तुम्हारी काली घटा बना जाता था..
..तुम्हारी अदाओं में कुछ ऐसा था..
..जैसें किसी पुरानें घाव पे कोई मरहम था..
..सबसे निराली थीं मुस्कान तुम्हारी..
..चेहरें पे छाई रहती थीं..
..हर-वक्त एक अरमान पुरानी..
..मैं तुम्हें देख बदहाली से कभी गुजरा ही नहीं..
..तुम वो मूरत थीं..
..जिसमें कई दुआओं की मिन्नत बसी थीं..
..हल्की सी खरोंच से घबरा जाती थीं..
..तुम थीं मेरें मुहब्बत के करीब इतनी..
..हर रात बसर मुझमें कर जाती थीं..
..मैं माँगता था तुमसे अपनें हक का प्यार..
..लब से लब लगा के..
..खामोश तुम कर जाती थीं..
..तुम्हारी बातें..
..जो यूं ही बेवजह शुरू हो जाती थीं..!
..नितेश वर्मा..
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