Saturday, 21 June 2014

..बेटियाँ..

..कहानियों से निकल कर जुबानों तक चली आई हैं..
..बेटियाँ मकानों से निकल कर आसमानों तक चली आई हैं..

..बुलन्दियों पे भी हैं उनका हिसाब बराबर..
..बकवासों से निकल कर किताबों तक चली आई हैं..

..आँखों की नमीं दर्दों की आह!
..बेटियाँ बिछावन से निकल कर जमानें तक चली आई हैं..

..पहरा लगा के रखता था जो तबका समाजी..
..बेटियाँ रसोइयों से निकल कर प्रशासन तक चली आई हैं..

..अब कोई खता तुम भी करो तो सँभल जाओ वर्मा..
..बेटियाँ सौदों से निकल कर ज़मींदारी तक चली आई हैं..!

..नितेश वर्मा..

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