ख़तों जैसा अब कोई सिलसिला नहीं होता हैं
अक्सर हम बातें
सोशल-मीडिया पर करते हैं
अग़र वो रूठ जाती है
तो मैं घंटों उसे मैसेज़े्स करता हूँ
पोक करता हूँ या कभी-कभार फ़ोन
अग़र फिर भी वो ना माने तो
उसे किसी ग़ालिब के शे'र के साथ
विथ मी करके टैग कर देता हूँ
हालांकि वो रुठती है बहुत पर
मान भी जाती है जल्दी बहुत
और आप कहती है कि मैं
कभी उसे ख़त लिखके मनाकर देखूँ
दादी ज़माना बदल चुका है
अब वो पुरानी मुहब्बत नहीं रही
जो ख़तों में मीर, ग़ालिब या दाग़ को लाएँ
ना ही प्रेमिका को किसी शाम
किसी वीराने वादी में चुपके से बुलाए
मंदिर-मस्जिद में बेवज़ह का परिक्रमा
अब नहीं होता है किसी परिंदे से
और ना ही अब कहीं कोई
दिल क़िताबों के हेर-फेर से मिलते हैं
अब नहीं होती है वैसी जुनूनियत
और ना ही अब बची रही है
वैसी कोई अज़ीबोग़रीब मुहब्बत
ये ज़माना अब बहुत बदल चुका है.. यहाँ
ख़तों जैसा अब कोई सिलसिला नहीं होता हैं।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
अक्सर हम बातें
सोशल-मीडिया पर करते हैं
अग़र वो रूठ जाती है
तो मैं घंटों उसे मैसेज़े्स करता हूँ
पोक करता हूँ या कभी-कभार फ़ोन
अग़र फिर भी वो ना माने तो
उसे किसी ग़ालिब के शे'र के साथ
विथ मी करके टैग कर देता हूँ
हालांकि वो रुठती है बहुत पर
मान भी जाती है जल्दी बहुत
और आप कहती है कि मैं
कभी उसे ख़त लिखके मनाकर देखूँ
दादी ज़माना बदल चुका है
अब वो पुरानी मुहब्बत नहीं रही
जो ख़तों में मीर, ग़ालिब या दाग़ को लाएँ
ना ही प्रेमिका को किसी शाम
किसी वीराने वादी में चुपके से बुलाए
मंदिर-मस्जिद में बेवज़ह का परिक्रमा
अब नहीं होता है किसी परिंदे से
और ना ही अब कहीं कोई
दिल क़िताबों के हेर-फेर से मिलते हैं
अब नहीं होती है वैसी जुनूनियत
और ना ही अब बची रही है
वैसी कोई अज़ीबोग़रीब मुहब्बत
ये ज़माना अब बहुत बदल चुका है.. यहाँ
ख़तों जैसा अब कोई सिलसिला नहीं होता हैं।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry