तलाशते फिर मरेंगे इस प्यास में हम
सराब कहीं ठहरेगी इस आस में हम।
मुद्दा हर दफ़ा उठाते है ख़िलाफ़ तेरे
ताउम्र रहेंगे फिर यूं एहसास में हम।
मुझको समझ नहीं मैं शर्मिंदा भी नहीं
चीख़ती हैं आवाज़ें, है ख़रास में हम।
उखाड़ कर हर दफ़ा रख दिया गया
निकल आये फिर फूल घास में हम।
नासमझ कहने पर यूं क्या कहें वर्मा
क्या पता उन्हें है उनके साँस में हम।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
सराब कहीं ठहरेगी इस आस में हम।
मुद्दा हर दफ़ा उठाते है ख़िलाफ़ तेरे
ताउम्र रहेंगे फिर यूं एहसास में हम।
मुझको समझ नहीं मैं शर्मिंदा भी नहीं
चीख़ती हैं आवाज़ें, है ख़रास में हम।
उखाड़ कर हर दफ़ा रख दिया गया
निकल आये फिर फूल घास में हम।
नासमझ कहने पर यूं क्या कहें वर्मा
क्या पता उन्हें है उनके साँस में हम।
नितेश वर्मा
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