माना के लगाया हर इल्ज़ाम सही नहीं है
ज़ुर्म थोपा था मुझपे ये काम सही नहीं है।
यूं अपने हक़ लेने जो पहुँचे तेरे शह्र हम
लगा तेरे दर पे भी इंतज़ाम सही नहीं है।
फैला था हर ओर एक ही अँधेरा वहाँ भी
चराग़ जल उठे ये इंतक़ाम सही नहीं है।
उनके आँसूओं का हिसाब करने लगे थे
मग़र अब ये ले जाओ जाम सही नहीं है।
फ़ैसला सुनाने वाले मुँह तक़ते रहे वर्मा
अब सच सुनो तेरा अंज़ाम सही नहीं है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
ज़ुर्म थोपा था मुझपे ये काम सही नहीं है।
यूं अपने हक़ लेने जो पहुँचे तेरे शह्र हम
लगा तेरे दर पे भी इंतज़ाम सही नहीं है।
फैला था हर ओर एक ही अँधेरा वहाँ भी
चराग़ जल उठे ये इंतक़ाम सही नहीं है।
उनके आँसूओं का हिसाब करने लगे थे
मग़र अब ये ले जाओ जाम सही नहीं है।
फ़ैसला सुनाने वाले मुँह तक़ते रहे वर्मा
अब सच सुनो तेरा अंज़ाम सही नहीं है।
नितेश वर्मा
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