उस पर मेरी बातों का असर हुआ नहीं
वो कहीं गई नहीं, और मैं भी मरा नहीं।
यूं लानत भेजकर फ़ेंका था उसने मुझे
मैं फिर भी लौट आया कहीं गया नहीं।
मैं मुख़ालफ़त करता रहा हूँ कंकड़ों से
मैंने तो आईने से कभी कुछ कहा नहीं।
मैं कभी मुकम्मल ना हुआ इश्क़ में तेरे
दिले-ज़ख़्म को तुमने भी तो सहा नहीं।
इस तरह से वो नज़रअंदाज़ करते रहे
मृगतृष्णा मंज़र और कोई प्यासा नहीं।
ज़ुबान का अकसर मुकर जाना बेहतर
हालात से बढ़के यहाँ कोई सज़ा नहीं।
अपने नसीब के जरिये पा लूंगा मैं उसे
पर है, कोई चीज़ जो मुझे मिलता नहीं।
मैंने सब मिटा दिया बस ख़ुदको छोड़
होश आया तो देखा, मैं भी ख़ुदा नहीं।
मिलना था जो कभी उनसे हमें ऐ वर्मा
सायों ने कहा, के वो तुमसे ज़ुदा नहीं।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
वो कहीं गई नहीं, और मैं भी मरा नहीं।
यूं लानत भेजकर फ़ेंका था उसने मुझे
मैं फिर भी लौट आया कहीं गया नहीं।
मैं मुख़ालफ़त करता रहा हूँ कंकड़ों से
मैंने तो आईने से कभी कुछ कहा नहीं।
मैं कभी मुकम्मल ना हुआ इश्क़ में तेरे
दिले-ज़ख़्म को तुमने भी तो सहा नहीं।
इस तरह से वो नज़रअंदाज़ करते रहे
मृगतृष्णा मंज़र और कोई प्यासा नहीं।
ज़ुबान का अकसर मुकर जाना बेहतर
हालात से बढ़के यहाँ कोई सज़ा नहीं।
अपने नसीब के जरिये पा लूंगा मैं उसे
पर है, कोई चीज़ जो मुझे मिलता नहीं।
मैंने सब मिटा दिया बस ख़ुदको छोड़
होश आया तो देखा, मैं भी ख़ुदा नहीं।
मिलना था जो कभी उनसे हमें ऐ वर्मा
सायों ने कहा, के वो तुमसे ज़ुदा नहीं।
नितेश वर्मा
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