Sunday, 14 August 2016

वो एक बहुत ही हसीन दौर था

वो एक बहुत ही हसीन दौर था
जब तुम अकसर याद आया करती थी
मेरे ख़्वाबों की तुम तस्वीर सजाती थी
अपनी बाहों की उंगलियों को
कभी मेरी उंगलियों से उलझाती थी
तो कभी अपनी जुल्फें संवारती थी
और यूं कभी जो जी में आएँ तो
मेरी बालों में एक लहर लाती थी
अपनी उंगलियाँ फ़िराती थी
फिर अकसर ख़ामोश हो जाती थी
जो किसी शाम तुम मिलने आती थी
बहारों की गुलाबी सौगात लाती थी
चाय की ग़र्म चुस्कियों में
सर्दियों के घने कोहरे के धुंध में
तुम्हारी मरहबी लबों की ज़िक्र में
एक शख़्स मैं कबसे क़ैद था
बेज़ुबाँ.. बेशिक़ायत.. बेदाग़.. था
फिर भी एक बाइस रहा था ये
वो मेरा तुमपे यक़ीन-ए-मर्ज़-ए-तौर था
वो एक बहुत ही हसीन दौर था
जब तुम अकसर याद आया करती थी।

नितेश वर्मा

‪#‎Niteshvermapoetry‬

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