Sunday, 14 August 2016

इन आदतों में अब वो कहीं नहीं है

इन आदतों में अब वो कहीं नहीं है
और ना ही उसका कोई ज़िक्र
ना ही अब वो याद आती है मुझे
और ना ही अब कभी
उसकी गली से गुजरता हूँ मैं
वो एक वक़्त था जब
धड़कने देखके उसे धड़कती थी
बिना बोले कोई समझता था मुझे
कोई मुझमें भी मौजूद रहता था
कोई इन निगाहों को भी पढ़ता था
बिना वजह की बात क्या होती है
किसी मौजूं पे बहस कैसे होती है
शाम चायो के बीच कैसे गुजर जाती है
ख़्वाबों से भी ज़्यादा क़रीब जब
ख़्वाबों की शहजादी नज़र आती है
जब मुहब्बत.. इक़रारी.. बेफिक्री..
बेतकल्लुफ़ी सब बेज़ुबानी होती हैं
ख़तों में जैसे कोई रवानी होती हैं
पर सबकुछ अब जैसे भूल बैठा हूँ मैं
जबसे वो बयां करके गईं हैं मुझसे
कोई है - जो है सबसे बेहतर
वो होना चाहती हूँ उसकी.. उम्म्म
शायद मुझसे भी थोड़ा ज्यादा
मैं अब बदल चुका हूँ यक़ीनन और
आदतें भी बदलीं है तमाम बोझिल
मग़र अब इतना तो पता है कि
इन आदतों में अब वो कहीं नहीं है
और ना ही उसका कोई ज़िक्र
ना ही अब वो याद आती है मुझे
और ना ही अब कभी
उसकी गली से गुजारता हूँ मैं।

नितेश वर्मा
‪#‎Niteshvermapoetry‬

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