हासिल कर लूंगा कुछ मैं भी बिगाड़ कर उसको
फिर मैंने भी रख दिया यूं तोड़-ताड़ कर उसको।
वो ताउम्र अपने हक़ की आवाज़ उठाता रहा था
मैं फिर लौट आया घर मिट्टी में गाड़ कर उसको।
किसी ने फेंक दिया था के कहीं बर्बाद हो जाएं वो
और एक मैं के उठा लाया फिर झाड़कर उसको।
वो गिरेबां पकड़ता है जब भी वो परेशान होता है
एक आवाज़ चीख़तीं है फिर दहाड़ कर उसको।
उसने अपने ज़मीर का सौदा किया था मत भूलो
एक शख़्स और निकलेगा फिर फाड़कर उसको।
मैं क्यूं बताऊँ कि मुझे उससे कोई हमदर्दी भी है
मैं ख़ुदको पूरा करता रहा जोड़-जाड़ कर उसको।
उसके शक्ल से नाजाने किसकी बू आती रही थी
मैं नाजाने किसको ढूंढता रहा कबाड़ कर उसको।
वो एक फूल था मुझसे तो ये बर्दाश्त ना हुआ वर्मा
मैं अब खुश हूँ ज़मीन से पूरा उखाड़ कर उसको।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
फिर मैंने भी रख दिया यूं तोड़-ताड़ कर उसको।
वो ताउम्र अपने हक़ की आवाज़ उठाता रहा था
मैं फिर लौट आया घर मिट्टी में गाड़ कर उसको।
किसी ने फेंक दिया था के कहीं बर्बाद हो जाएं वो
और एक मैं के उठा लाया फिर झाड़कर उसको।
वो गिरेबां पकड़ता है जब भी वो परेशान होता है
एक आवाज़ चीख़तीं है फिर दहाड़ कर उसको।
उसने अपने ज़मीर का सौदा किया था मत भूलो
एक शख़्स और निकलेगा फिर फाड़कर उसको।
मैं क्यूं बताऊँ कि मुझे उससे कोई हमदर्दी भी है
मैं ख़ुदको पूरा करता रहा जोड़-जाड़ कर उसको।
उसके शक्ल से नाजाने किसकी बू आती रही थी
मैं नाजाने किसको ढूंढता रहा कबाड़ कर उसको।
वो एक फूल था मुझसे तो ये बर्दाश्त ना हुआ वर्मा
मैं अब खुश हूँ ज़मीन से पूरा उखाड़ कर उसको।
नितेश वर्मा
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