Sunday, 14 August 2016

यूं थोड़े से उधारी में जीते हैं लोग

यूं थोड़े से उधारी में जीते हैं लोग
कभी-कभार ही तो पीते हैं लोग।

अब ग़रीबी ना सताएँ तो क्या हो
कहाँ ग़मे-हिज़्र में मरते हैं लोग।

नितेश वर्मा

‪#‎Niteshvermapoetry‬

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