सुना है तस्बीह में मुझे पढ़ती है आप
फ़िर मुझसे क्यूं नहीं कहती है आप।
आपसे हमें मुहब्बत क्यूं ना हो जाए
ग़ज़ल की दीवान सी लगती है आप।
इस हुस्न को देख कौन ना मरा जाए
जब मुझमें ही महकी रहती है आप।
इक इश्क़ का बुखार है, समझते हैं
इस जिस्म में कही सुलगती है आप।
हुज़ूम भी आपके पीछे चल पड़े ये
अब ख़ुदको क्या समझती है आप।
बस मुझे अब ख़ुदमें समेट लें वर्मा
कहाँ यूं हर वक़्त भटकती है आप।
नितेश वर्मा और आप।
फ़िर मुझसे क्यूं नहीं कहती है आप।
आपसे हमें मुहब्बत क्यूं ना हो जाए
ग़ज़ल की दीवान सी लगती है आप।
इस हुस्न को देख कौन ना मरा जाए
जब मुझमें ही महकी रहती है आप।
इक इश्क़ का बुखार है, समझते हैं
इस जिस्म में कही सुलगती है आप।
हुज़ूम भी आपके पीछे चल पड़े ये
अब ख़ुदको क्या समझती है आप।
बस मुझे अब ख़ुदमें समेट लें वर्मा
कहाँ यूं हर वक़्त भटकती है आप।
नितेश वर्मा और आप।
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